tag:blogger.com,1999:blog-91554338434231436162023-06-20T21:41:46.551-07:00मगही व्याकरणबिहारशरीफ की मगही का विवरणात्मक व्याकरण तथा मगही उपभाषाओं का तुलनात्मक अध्ययननारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-90595209465203775222009-11-23T00:36:00.000-08:002009-11-24T00:40:24.001-08:002.2 हिन्दी के "थे/ थीं" के लिए मगही के क्रिया-रूप<div align="justify"><strong><span style="color:#ff0000;">2. 'ह' (to be) धातु के भूतकाल के रूप</span></strong></div><div align="justify"><strong><span style="color:#ff0000;"></span></strong></div><div align="justify"><strong>2.2 हिन्दी के "थे/ थीं" के लिए मगही के क्रिया-रूप<br /><br />2.2.1</strong> हिन्दी में "थे/ थीं" का प्रयोग अन्य पुरुष बहुवचन (third person plural number), मध्यम पुरुष बहुवचन (second person plural number) एवं उत्तम पुरुष बहुवचन (first person plural number) के साथ किया जाता है । मगही में "तू", "तूँ" या "तोहन्हीं" अनादर सूचक भी हो सकता है या आदरार्थ भी । अतः क्रिया के रूप से ही स्पष्ट होता है कि इसका प्रयोग आदरार्थ है या अनादरार्थ । मगही में अनादरार्थ प्रयुक्त मध्यम पुरुष बहुवचन या अन्य पुरुष बहुवचन कर्ता के साथ भी क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है, अर्थात् हिन्दी के "था/ थी" के ही संगत (corresponding) मगही रूप का प्रयोग होता है, "थे/ थीं" का नहीं ।<br /><br /><strong>2.2.2</strong> 'हिन्दी के "हैं" के लिए मगही के क्रिया-रूप' के अन्तर्गत जिन-जिन प्रसंगों में मगही के भिन्न-भिन्न जो भी रूप प्रयुक्त होते हैं, उन्हीं प्रसंगों में "थे/ थीं" के संगत मगही के क्रिया रूप प्रयुक्त होते हैं ।<br /><br /><strong>2.2.3</strong> वर्तमान काल में ककार सहित मगही के क्रिया रूपों में '<strong><span style="color:#ff0000;">क</span></strong>' को <strong><span style="color:#ff0000;">'ल</span></strong>' में बदल देने से संगत भूतकाल के रूप प्राप्त हो जाते हैं । ककार रहित रूप '<strong><span style="color:#3333ff;">ह'</span></strong> के स्थान पर '<strong><span style="color:#3333ff;">हल</span></strong>' रूप होता है ।<br /><br />हिन्दी के "<strong><span style="color:#ff0000;">हैं</span></strong>" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –<br />(हम) हैं – (हम, हमन्हीं/ हम सब) <strong><span style="color:#3333ff;">हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ</span></strong><br />(आप) हैं – (अपने) <strong><span style="color:#3333ff;">हथिन</span></strong><br /><br />[वे, वे लोग (आदरार्थी)] हैं – (ऊ, ऊ सब/ ऊ लोग/ ओकन्हीं) <strong><span style="color:#3333ff;">हका; हथन, हथिन, हथुन; <span style="color:#ff0000;">हखन, हखिन, हखुन;</span> -, <span style="color:#990000;">हथी, हथू</span> ; -, <span style="color:#cc33cc;">हखी, हखू</span><br /></span></strong><br />हिन्दी के "थे/ थीं" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –<br />(1) अन्य पुरुष बहुवचन में -<br />[वे, वे लोग (आदरार्थी)] थे/ थीं – (ऊ, ऊ सब/ ऊ लोग/ ओकन्हीं) <strong><span style="color:#3333ff;">हला; हलथन, हलथिन, हलथुन; <span style="color:#ff0000;">हलखन, हलखिन, हलखुन;</span> -, <span style="color:#660000;">हलथी, हलथू ;</span> -, <span style="color:#cc33cc;">हलखी, हलखू</span> ।<br /></span></strong><br />(2) मध्यम पुरुष बहुवचन में -<br />(तुम/ तुम सब) थे/ थीं - (तूँ /तूँ सब/ तोहन्हीं / तोहन्हीं सब (आदरार्थी)] <strong><span style="color:#3333ff;">हलऽ , हलहो, हलहू</span></strong> ।<br />(आप) थे/ थीं – (अपने) <strong><span style="color:#3333ff;">हलथिन</span></strong> ।<br /><br />(3) उत्तम पुरुष बहुवचन में -<br />(हम) थे/ थीं – (हम, हमन्हीं/ हम सब) <strong><span style="color:#3333ff;">हलिअइ, हलियो, हलिअउ</span></strong> ।<br /><br />नोटः "<strong><span style="color:#3333ff;">ह</span></strong>" धातु के लिए वर्तमान काल की तरह भूतकाल में ककार सहित रूप नहीं होता ।</div><div align="justify"><strong>2.2.4 “हल” का प्रयोग</strong> - इसके लिए देखें 'हिन्दी के "था/थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप' ।<br /><br /><strong>2.2.5 “हला” का प्रयोग</strong> - अन्य पुरुष में एक या अनेक व्यक्ति को मध्यम दर्जे का आदर-भाव व्यक्त करना हो तो "हला" का प्रयोग होता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में,<br />ऊ कीऽ शेर हला जे हमरा खा जइता हल ? - वे क्या शेर थे जो हमें खा जाते ?<br />ई समूचे शहर में हीरा के सबसे बड़गर व्यापारी हला । - ये समूचे शहर में हीरा के सबसे बड़े व्यापारी थे ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में,<br /> ऊ कीऽ करऽ हला ? - वे क्या करते थे ।<br /> ऊ जेतना बतइलका ओरा से कहीं अधिक उनका ई कतल के बारे मालूम हलइ । जे हमरा चाही हल ऊ छिपाके रखले हला । - उन्होंने जितना बताया उससे कहीं अधिक उन्हें इस कत्ल के बारे मालूम था । जो हमें चाहिए था वो छिपाके रखे हुए थे ।<br /><br /><strong>2.2.6 हलथन, हलथिन, हलथुन के प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग उच्च दर्जे का आदर-भाव व्यक्त करने के लिए उन्हीं प्रसंगों में किया जाता है जिनमें <strong><span style="color:#3333ff;">हथन, हथिन, हथुन</span></strong> का प्रयोग होता है । हलखन, हलखिन, हलखुन का प्रयोग <strong><span style="color:#3333ff;">हलथन, हलथिन, हलथुन</span></strong> के स्थान पर ही किया जाता है । नकार रहित क्रिया रूप <strong><span style="color:#990000;">हलथी, हलथू</span></strong> और <strong><span style="color:#cc33cc;">हलखी, हलखू</span></strong> के प्रयोग <strong><span style="color:#3333ff;">हलथिन, हलथुन</span></strong> के स्थान पर ही किया जाता है ।<br /><br />पूर्व रूपों के समान ही इसका भी मुख्य या सहायक क्रिया के रूप में प्रयोग होता है ।<br /><br />सामान्यतः <strong><span style="color:#3333ff;">'हलथन'</span></strong> का प्रयोग भूतकाल में ऐसे अन्यपुरुष संज्ञा के लिए किया जाता है जिसका वक्ता या श्रोता से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होत, जबकि <strong><span style="color:#3333ff;">'हलथिन'</span></strong> और <strong><span style="color:#3333ff;">'हलथुन'</span></strong> का वक्ता या श्रोता के साथ प्रासंगिक रूप से सम्बन्ध या किसी प्रकार का नित्य सम्बन्ध (पति, पत्नी, पुत्र आदि) होता है । <strong><span style="color:#3333ff;">हलथन, हलथिन, हलथुन</span></strong> का प्रयोग ठीक से समझने के लिए प्रसंग समझना आवश्यक है ।<br /><br />(1) प्रसंगः एक आदमी एक बच्चे से बात कर रहा है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तोरा बाउ मारबो करऽ हलथुन ?</span></strong> - तुझे पिता (जी) मारते भी थे ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">नयँ, हमरा बाउ जी कभीयो नयँ मारऽ हलथन ।</span></strong> - नहीं, मुझे पिताजी कभी भी नहीं मारते थे ।<br /><br />(2) प्रसंगः एक आदमी एक बच्चे से बातचीत करता है ।<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">- तखनी तोर बाउ घरे हलथुन बुआ ?</span></strong> - उस समय तेरे बाबूजी घर पर ही थे, बबुआ ?<br /> <strong><span style="color:#3333ff;"> - नयँ, नयँ हलथुन ।</span></strong> - नहीं, नहीं थे ।<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">- कखने अयलथुन हल ?</span></strong> - कब आए थे ?<br /> -<strong><span style="color:#3333ff;"> सँझिया के अयलथुन हल ।</span></strong> - शाम को आए थे ।<br /><br />ध्यातव्यः इस प्रसंग में प्रश्न और उत्तर दोनों में केवल "-<strong><span style="color:#ff0000;">थुन</span></strong>" का प्रयोग होता है। प्रसंग से यह पता चलता है कि प्रश्नकर्ता का बच्चे के पिता से किसी प्रकार का व्यक्तिगत काम था । परन्तु यदि प्रश्न केवल सामान्य जानकारी हेतु किया गया हो तो उत्तर में '-<strong><span style="color:#ff0000;">थुन'</span></strong> के स्थान पर '-<strong><span style="color:#ff0000;">थिन'</span></strong> का ही प्रयोग होगा । जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तोर बाउ के कीऽ हो गेलो ह ?</span></strong> - तेरे पिताजी को क्या हो गया है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मालूम नयँ । कल सँझिया के घरवा अयलथिन त ठीके-ठाक हलथिन । लेकिन कुछ देर के बाद उनकर तबीयत बिगड़े लगलइ ।</span></strong> - मालूम नहीं । कल शाम को घर आए तो ठीक-ठाक ही थे । लेकिन कुछ देर के बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी ।<br /><br />(3) प्रसंगः एक आदमी एक प्रोफेसर साहब के बारे में उनकी श्रीमती जी से बातचीत करता है ।<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">- प्रो॰ साहब घरे हलथिन ?</span></strong> - प्रो॰ साहब घर पर ही थे ?<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">- नयँ, नयँ हलथुन ।</span></strong> - नहीं, नहीं थे ।<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">- कखने अयलथिन हल ?</span></strong> - कब आए थे ?<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">- बिहान होला पर अयलथुन हल ।</span></strong> - सुबह होने पर आए थे ।<br /><br />ध्यातव्यः इस प्रसंग में प्रश्न में केवल "-<strong><span style="color:#ff0000;">थिन</span></strong>" और उत्तर में केवल "-<strong><span style="color:#ff0000;">थुन</span></strong>" का प्रयोग होता है । प्रसंग से यह पता चलता है कि प्रश्नकर्ता का प्रोफेसर साहब से किसी प्रकार का व्यक्तिगत काम था । परन्तु यदि प्रश्न केवल सामान्य जानकारी हेतु या किसी विशिष्ट कार्य (जैसे पंचायत) में पूछताछ हेतु किया गया हो तो उत्तर में '-<strong><span style="color:#ff0000;">थुन'</span></strong> के स्थान पर '-<strong><span style="color:#ff0000;">थिन'</span></strong> का ही प्रयोग होगा ।<br /><br /><strong>2.2.7 हलऽ , हलहो, हलहू का प्रयोग</strong> – मध्यम पुरुष बहुवचन में -<br /> (तुम/ तुम सब) थे/ थीं - (तूँ /तूँ सब/ तोहन्हीं / तोहन्हीं सब (आदरार्थी)] <strong><span style="color:#3333ff;">हलऽ , हलहो, हलहू</span></strong> ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हलऽ , हलहो, हलहू</span></strong> में आदर का भाव बढ़ते क्रम में है । साधारणतः <strong><span style="color:#3333ff;">हलऽ</span></strong> का प्रयोग कम उम्र के लोगों के लिए, <strong><span style="color:#3333ff;">हलहो</span></strong> रिश्तेदार के बाहर के समान उम्र वालों के लिए एवं रिश्तेदार के उम्र में अधिक व्यक्ति के लिए और <strong><span style="color:#3333ff;">हलहू</span></strong> का प्रयोग रिश्तेदार के बाहर के बुजुर्गों के लिए किया जाता है । बच्चों के साथ प्यार प्रदर्शित करने के लिए किसी भी रूप का प्रयोग किया जा सकता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">गाँव में तूहीं अदमी हलऽ , जेकरा पर हम आँख मून के बिसवास कर सकऽ हलूँ आउ बिना कोय डर-भय के बात कर सकऽ हलूँ</span></strong> - गाँव में तुम ही (एक भले) व्यक्ति/ इंसान थे, जिस पर मैं आँख मूँद कर विश्वास कर सकता था और बिना किसी डर-भय के बात कर सकता था । (यहाँ, गाँव में कई गुटों में बँटे लोगों में से एक गुट का हैसियत में बड़ा व्यक्ति एकान्त में लगभग हमउम्र अपेक्षाकृत हैसियत में छोटे एक ऐसे व्यक्ति से बात कर रहा है जो दवाब और धमकी के बाबजूद किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ ।)<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ जब तक हियाँ हलहो तब तक हमन्हीं लगि कोय चिन्ता के बात नयँ हलइ</span></strong> - आप जब तक यहाँ थे तब तक हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं थी ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ जब तक हियाँ हलहू तब तक हमन्हीं लगि कोय चिन्ता के बात नयँ हलइ</span></strong> - आप जब तक यहाँ थे तब तक हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं थी ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">जब तूँ हुआँ हलऽ , त कइसे रहऽ हलऽ ?</span></strong> - जब तुम वहाँ थे तो कैसे रहते थे ? (इस प्रसंग में वक्ता अपने से कम उम्र के लड़के को बोल रहा है ।)<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">काहाँ जा हलहू ?</span></strong> - (आप) कहाँ जाते थे / जाती थीं ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">बाउ (जी), काहाँ जा हलहो ?</span></strong> - पिता जी, (आप) कहाँ जाते थे ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बाबा, काहाँ जा हलहो ?</span></strong> - दादा जी, (आप) कहाँ जाते थे ?<br /><br />नोट: मगही में "<strong>बाबाजी</strong>" का प्रयोग (अकसर कम पढ़े-लिखे या बिलकुल अनपढ़) ब्राह्मण के लिए किया जाता है । अतः साधारणतः बच्चे अपने दादा को कभी "<strong>बाबाजी</strong>" कहकर सम्बोधित नहीं करते । परन्तु, अपने पिता को सम्बोधित करने के लिए "<strong>बाउ</strong>" के साथ-साथ अधिक आदर के लिए "जी" भी साथ में जोड़ देते हैं ।<br /><br /><br /><strong>2.2.8</strong> मध्यम पुरुष में (आप) "थे/ थीं" अर्थ में हमेशा (अपने) "हलथिन" का प्रयोग होता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में,<br /><br /> <strong><span style="color:#3333ff;">अपने कउन पद पर हलथिन ?</span></strong> - आप किस पद पर थे/ थीं ? <br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में,<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;"> अपने काहाँ रहऽ हलथिन ? </span></strong>- आप कहाँ रहते थे / रहती थीं ?<br /> <strong><span style="color:#3333ff;">अपने कीऽ करऽ हलथिन ?</span></strong> - आप क्या करते थे / करती थीं ?<br /><br /><strong>2.2.9 हलिअइ, हलियो, हलिअउ का प्रयोग</strong> - इसकी चर्चा <strong>'हिन्दी के "था/ थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप'</strong> के अन्तर्गत की जा चुकी है ।</div>नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-29287327826680538092009-10-26T01:27:00.000-07:002009-11-24T01:53:19.325-08:002.1 हिन्दी के "था/ थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप<div align="justify"><strong><span style="color:#ff0000;">2. 'ह' (to be) धातु के भूतकाल के रूप </span></strong></div><div align="justify"> </div><div align="justify"><strong>'ह' (to be) धातु के भूतकाल के रूप<br /></strong></div><div align="justify">(हम) <strong><span style="color:#3333ff;">हलूँ, हलिअइ, हलिअउ, हलियो</span></strong><br /><br />(तूँ - तू अर्थ में) <strong><span style="color:#3333ff;">हलँऽ </span></strong><br />(तूँ - तुम अर्थ में, अनादरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">हलहीं</span></strong><br />(तूँ - तुम अर्थ में, आदरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">हलऽ, हलहो, हलहू</span></strong><br />(अपने)<strong><span style="color:#3333ff;"> हलथिन</span></strong><br /><br />(ऊ - अनादरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">हल, हलइ, हलउ, हले, हलो, हलन</span></strong><br />(ऊ - आदरार्थ) <span style="color:#3333ff;"><strong>हला; हलथन, हलथिन, हलथुन; <span style="color:#ff0000;">हलखन, हलखिन, हलखुन;</span></strong> <span style="color:#990000;"><strong>-, हलथी, हलथू ;</strong></span> </span><span style="color:#cc33cc;"><strong>-, हलखी, हलखू</strong></span><strong><span style="color:#cc33cc;"><br /></span></strong><br />2<strong>.1 हिन्दी के "था/ थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप</strong></div><div align="justify"><strong></div></strong><div align="justify"><strong>2.1.1</strong> हिन्दी में "था/ थी" का प्रयोग अन्य पुरुष एकवचन (third person singular number), मध्यम पुरुष एकवचन (second person singular number) अनादरसूचक "तू" एवं उत्तम पुरुष एकवचन (first person singular number) के साथ किया जाता है । मगही में "तू" या "तूँ" अनादर सूचक भी हो सकता है या आदरार्थ भी । अतः क्रिया के रूप से ही स्पष्ट होता है कि इसका प्रयोग आदरार्थ है या अनादरार्थ । मगही में अनादरार्थ प्रयुक्त अन्य पुरुष बहुवचन कर्ता के साथ भी क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है, अर्थात् हिन्दी के "था/ थी" के ही संगत (corresponding) मगही रूप का प्रयोग होता है, "थे/ थीं" का नहीं ।<br /><br /><strong>2.1.2 'हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप' </strong>और<strong> 'हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया-रूप'</strong> के अन्तर्गत जिन-जिन प्रसंगों में मगही के भिन्न-भिन्न जो भी रूप प्रयुक्त होते हैं, उन्हीं प्रसंगों में "था/ थी" के संगत मगही के क्रिया रूप प्रयुक्त होते हैं । </div><div align="justify"><br /><strong>2.1.3</strong> वर्तमान काल में ककार सहित मगही के क्रिया रूपों में '<strong><span style="color:#ff0000;">क</span></strong>' को '<span style="color:#ff0000;"><strong>ल</strong></span>' में बदल देने से संगत भूतकाल के रूप प्राप्त हो जाते हैं । ककार रहित रूप 'ह' के स्थान पर '<strong><span style="color:#3333ff;">हल</span></strong>' रूप होता है ।<br /><br />हिन्दी के "<strong><span style="color:#ff0000;">है</span></strong>" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –<br />(1) अन्य पुरुष एकवचन में - <strong><span style="color:#3333ff;">ह, हइ/ हकइ, हउ/ हकउ, (हे/) हके, हो/ हको, हन/ हकन</span></strong> ।<br />(2) अनादरार्थ प्रयुक्त "तू" या "तूँ" के साथ - <strong><span style="color:#3333ff;">हँ/ हकँऽ</span></strong> ।<br /></div><div align="justify">मगही में "मैं" शब्द नहीं । इसके लिए "हम" का ही प्रयोग होता है ।<br /><br />हिन्दी के "(मैं) हूँ" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –<br />(हम) <strong><span style="color:#3333ff;">ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हिअउ/ हकिअउ, हियो/ हकियो</span></strong></div><div align="justify"><br />हिन्दी के "<strong><span style="color:#ff0000;">था/ थी</span></strong>" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –<br />(1) अन्य पुरुष एकवचन में - <strong><span style="color:#3333ff;">हल, हलइ, हलउ, हले, हलो, हलन</span></strong> ।<br />(2) अनादरार्थ प्रयुक्त "तू" या "तूँ" के साथ - <strong><span style="color:#3333ff;">हलँऽ</span></strong> ।<br />(3) उत्तम पुरुष एकवचन में - <strong><span style="color:#3333ff;">हलूँ, हलिअइ, हलिअउ, हलियो</span></strong></div><div align="justify"></div><div align="justify">नोटः<br />(1) वर्तमान काल के ककार रहित रूप "ही" के संगत भूतकाल रूप "हली" का प्रयोग बिहारशरीफ की मगही में नहीं होता ।<br />(2) जब मगही के "तू" या "तूँ" का प्रयोग हिन्दी के "तुम" अर्थ में किया जाता है तो "<strong><span style="color:#3333ff;">हलँऽ</span></strong>" के स्थान पर "<strong><span style="color:#3333ff;">हलहीं</span></strong>" का प्रयोग होता है ।<br />(3) "ह" धातु के लिए वर्तमान काल की तरह भूतकाल में ककार सहित रूप नहीं होता ।<br /><br /><strong>2.1.4 “हल” का प्रयोग</strong> -<br />"<strong><span style="color:#ff0000;">1.1.3 'ह' का प्रयोग</span></strong>" के बारे में जो कुछ बताया जा चुका है, उसी प्रकार "<strong><span style="color:#3333ff;">हल</span></strong>" के बारे में भी लागू होता है ।<br /><br />"<strong><span style="color:#3333ff;">हल</span></strong>" का प्रयोग साधारणतः सातत्यबोधक (continuous) या पूर्ण भूतकाल (past perfect tense) में भूतकाल (preterite) रूप के बाद एवं संदिग्ध भूतकाल में सहायक क्रिया (auxiliary verb) के रूप में होता है । यह पुरुष और वचन (person and number) पर निर्भर नहीं करता अर्थात् हिन्दी में "वे कहाँ जा रहे थे" जैसे वाक्यों में "रहे" और "थे" क्रिया के दो-दो बहुवचन रूप प्रयुक्त होते हैं वहाँ मगही में यह बात नहीं । मगही में "थे" के स्थान पर "था" का ही संगत रूप प्रयुक्त होता है, बहुवचन का संकेत भूतकाल रूप से ही प्राप्त हो जाता है । परन्तु यदि भूतकाल रूप अनुनासिकान्त हो तो इसका प्रभाव इसके ठीक बाद आनेवाले "<strong><span style="color:#3333ff;">ह</span></strong>" पर भी पड़ता है जिसके कारण अकसर इसके स्थान पर "<strong><span style="color:#3333ff;">हँ"</span></strong> सुनाई देता है और यदि अनुनासिकान्त पूर्णतः श्रव्य स्वर ध्वनि "<strong><span style="color:#ff0000;">अँ</span></strong>" आदि हो तो केवल "<strong><span style="color:#ff0000;">हँ</span></strong>" आदि ही सुनाई देता है ।</div><div align="justify"><br />उदाहरण -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ काहाँ जा रहले हल ?</span></strong> - वह कहाँ जा रहा था / रही थी ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बुतरुआ कीऽ कर रहले हल ?</span></strong> - बच्चा क्या कर रहा था ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ काहाँ गेले हल ?</span></strong> - वह कहाँ गया था / गई थी ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ कीऽ कइलके हल ?</span></strong> - उसने क्या किया था ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">सामा ओकरा बड़ी मार मरलके हल</span></strong> - श्याम ने उसे बहुत मार मारा था ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ई चिठिया कोय पढ़लके हल ?</span></strong> - इस चिट्ठी को किसी ने पढ़ा था ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ सब </span></strong>(<strong><span style="color:#ff0000;">अनादरार्थ</span></strong>) <strong><span style="color:#3333ff;">काहाँ जा रहले हल ?</span></strong> - वे सब कहाँ जा रहे थे / रही थीं ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बुतरुअन</span></strong> (<strong><span style="color:#ff0000;">अनादरार्थ</span></strong>) <strong><span style="color:#3333ff;">कीऽ कर रहले हल ?</span></strong> - बच्चे क्या कर रहे थे ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बुतरुअन</span></strong> (<strong><span style="color:#ff0000;">आदरार्थ या प्यार सूचक</span></strong>) <strong><span style="color:#3333ff;">कीऽ कर रहलथिन हल/ हँल ?</span></strong> - बच्चे क्या कर रहे थे ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ सब</span></strong> (<strong><span style="color:#ff0000;">आदरार्थ</span></strong>) <strong><span style="color:#3333ff;">काहाँ जा रहलथिन हल/ हँल ?</span></strong> - वे सब कहाँ जा रहे थे / रही थीं ?<br /><br /><span style="color:#3333ff;"><strong>तू / तूँ कीऽ कर रहलहो हल ?</strong></span> - आप क्या कर रहे थे / रही थीं ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ कर रहलँऽ हँल ?</span></strong> - तू क्या कर रहा था / थी ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ कइलँऽ हँल ? -</span></strong> तूने क्या किया था ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ ई कितब्बा पढ़लँऽ हँल ?</span></strong> - तूने यह किताब पढ़ी थी ? </div><div align="justify"></div><div align="justify"><strong><span style="color:#3333ff;">जदि तूँ अइतऽ हल त हम तोरा जरूर मदत करऽतियो हल</span></strong> - यदि आप आते तो मैं आपकी जरूर मदत करता । </div><div align="justify"><strong><span style="color:#3333ff;">हमरा पास पइसे नयँ हले त हम कीऽ करतूँ हँल ? कुच्छो खरीद नयँ पइलूँ ।</span></strong> - मेरे पास पैसा ही नहीं था तो मैं क्या करता ? कुछ भी खरीद नहीं पाया ।<br /><br /><strong>2.1.5 हलइ का प्रयोग</strong> - अन्य पुरुष एकवचन में<br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में , जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ तो बुतरु हलइ</span></strong> - वह तो बच्चा था ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">किरिसना छातर हलइ</span></strong> - कृष्ण छात्र था ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ पढ़ऽ हलइ</span></strong> - वह पढ़ता था / पढ़ती थी ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मंजुआ कीऽ करऽ हलइ ?</span></strong> - मंजु क्या करती थी ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मंजुआ घर के काम-काज देखऽ हलइ</span></strong> - मंजु घर का काम-काज देखती थी ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ दिन भर कीऽ करते रहऽ हलइ ?</span></strong> - वह दिन भर क्या करते रहता था / रहती थी ?<br /><br /><strong>2.1.6 हलउ का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है । जैसे –<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तोरा पढ़े-लिक्खे आवऽ हलउ ?</span></strong> - तुझे पढ़ना-लिखना आता था ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तोर बेटवा कीऽ करऽ हलउ ? </span></strong>- तुम्हारा बेटा क्या करता था ?<br /><br />इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता था' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में क्रिया ‘हलउ’ श्रोता के अनुसार है जो हैसियत या ओहदा में वक्ता से बहुत नीचे है !<br /><br /><strong>2.1.7 हले का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग "हम" के साथ किसी अन्यपुरुष के व्यक्ति, वस्तु आदि के लिए किया जाता है । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हमरा ओरा / ओकरा से कोय मतलब नयँ हले</span></strong> - हमें उससे कोई मतलब नहीं था ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम्मर ऊ केऽ हले ?</span></strong> - मेरा वह कौन (लगता) था ? (अर्थात् मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं था ।)<br /><br /><strong>2.1.8 हलो का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हमर बेटवा कलकत्ता में चपरासी के काम करऽ हलो</span></strong> - मेरा बेटा कलकत्ता में चपरासी का काम करता था ।<br /><br />इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता था' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में यह बात नहीं है । मगही में क्रिया 'हलो' अव्यक्त श्रोता के अनुसार है जो वक्ता की दृष्टि में आदरणीय है !<br /><br /><strong><span style="color:#000000;">2.1.9 हलन का प्रयोग</span></strong> - यह भी आदरार्थ प्रयोग है । परन्तु, ऐसा प्रयोग किसी चीज या व्यक्ति के बारे में तब किया जाता है जब यह किसी ऐसे आदरणीय व्यक्ति से सम्बन्धित हो जिसे वक्ता सीधे सम्बोधित न कर रहा हो अर्थात् आदरणीय व्यक्ति अन्य पुरुष (third person) के रूप में प्रयुक्त हो । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एगो धनी किसान तो हइये हलथिन, भवानीपुर में लोहा सिमेंट के दोकानो हलन</span></strong> - भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एक धनी किसान तो थे ही, भवानीपुर में लोहा सिमेंट की दुकान भी थी ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ दोकान से निमन अमदनी हो जा हलन</span></strong> - उस दुकान से अच्छी आमदनी हो जाती थी ।<br /><br />उपर्युक्त उदाहरणों में हिन्दी में 'थी' क्रिया 'दुकान' और 'आमदनी' के अनुसार है । परन्तु मगही में आदरार्थ 'हलन' क्रिया का प्रयोग अत्यन्त आदरणीय 'गोवर्धन शर्मा' जी के अनुसार है !<br /><br /><strong>2.1.10 हलँऽ के प्रयोग</strong>- इसका प्रयोग हिन्दी में प्रयुक्त "तू" के समानान्तर मगही में प्रयुक्त अनादरार्थ "तू" या "तूँ" के साथ<br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) रूप में किया जाता है । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ हलँऽ</span></strong> - तू था / थी ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ करऽ हलँऽ ?</span></strong> - तू क्या करता था / थी ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ इस्कूलवा पढ़े जा हलँऽ ?</span></strong> - तू स्कूल पढ़ने जाता था / थी ? </div><div align="justify"></div><div align="justify"><strong>2.1.11 हलूँ के प्रयोग</strong>-<br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हलूँ वसुदेव, आउ होलूँ वसुआ; कन्हा पे चढ़ के सींभ तोड़लक ससुआ ।<br /></span></strong>(मैं) था वसुदेव, और हो गया वसुआ; कन्धे पर चढ़कर सेम तोड़ा सास ने ।<br />(घरजमाई होने का नतीजा वसुदेव नामक व्यक्ति सुना रहा है ।)<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में,<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम अइसन गलत काम भूलियो के नयँ करऽ हलूँ</span></strong> - मैं ऐसा गलत काम भूल के भी नहीं करता था ।<br /><br /><strong>2.1.12 हलिअइ के प्रयोग</strong>-<br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम तो तब बुतरू हलिअइ, तइयो हमरा सब समझ में आवऽ हलइ कि ई घर में की की हो रहले ह</span></strong> - मैं तो तब बच्चा था, फिर भी मुझे सब समझ में आता था कि इस घर में क्या-क्या हो रहा है ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे –<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम जब कभी उनका हीं जा हलिअइ, त ज्योतिष के बारे खूब देर तक चर्चा करऽ हलिअइ</span></strong> - मैं जब कभी उनके यहाँ जाता था, तो ज्योतिष के बारे में खूब देर तक चर्चा करता था ।<br /><br /><strong>हलूँ और हलिअइ में अन्तर</strong> - जैसा कि उपर्युक्त वाक्यों से स्पष्ट होता है, हलूँ का प्रयोग स्वगत भाषण में या अपने पक्ष में रक्षात्मक (defensive) पहलू प्रस्तुत करने के लिए होता है, जबकि हलिअइ का प्रयोग सामान्य कथन के रूप में ।<br /><br />एक दूसरे वाक्य पर गौर करें ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम एरा / एकरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ हलिअइ तो ओरा / ओकरा बतइतिये हल कीऽ ?</span></strong> - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं था तो उसे बताता क्या ?<br />इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता किसी श्रोता से स्पष्ट रूप से बात कर ऐसी सूचना दे रहा है । वक्ता के इस कथन में गुस्सा झलकता है कि वह व्यर्थ ही कोई बात पूछ रहा था जो यह जानता ही नहीं था ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम एरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ हलूँ त ओरा बतइतूँ हँल कीऽ ?</span></strong> - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं था तो उसे बताता क्या ?<br />इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता के पास कोई श्रोता नहीं था, बल्कि वह ऐसा मन में सोच रहा था । या श्रोता तो था जिसे वह ऐसी सूचना दे रहा था, परन्तु उसके कथन में लाचारी झलकती है कि बात नहीं बता पाने के कारण व्यर्थ में उससे कष्ट झेलना पड़ रहा था ।<br /><br /><strong>2.1.13 हलिअउ के प्रयोग</strong> -<br />इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम तो एज्जे हलिअउ, तोरा घबराय के कीऽ बात हलउ ?</span></strong> - मैं तो यहीं था, तुझे घबराने की क्या बात थी ?</div><div align="justify"><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम जब कभी बिहारशरीफ जा हलिअउ त तोर बेटवा से भेंट हो जा हलउ</span></strong> - मैं जब कभी बिहारशरीफ जाता था तो तेरे बेटे से भेंट हो जाती थी ।<br /><br /><strong>2.1.14 हलियो के प्रयोग</strong>-<br />इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम तो एज्जे हलियो, तोरा घबराय के कीऽ बात हलो ?</span></strong> - मैं तो यहीं था, आपको घबराने की क्या बात थी ?<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम पचमा में पढ़ऽ हलियो तभीये के ई बात हको</span></strong> - मैं पाँचवीं (कक्षा) में पढ़ता था तभी की यह बात है । </div>नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-77840115723109850622009-10-24T21:13:00.000-07:002009-10-24T21:32:07.825-07:001.4 हिन्दी के "हो" के लिए मगही के क्रिया रूप<div align="justify">हिन्दी में वर्तमान काल में "हो" का प्रयोग मध्यम पुरुष के “तुम” (एकवचन) या “तुमलोग” (बहुवचन) के साथ किया जाता है । मगही में "हो" के लिए कई रूप होते हैं जो इस प्रकार हैं –<br /><br />(तुम/ तुमलोग) हो - (1) अनादरार्थ - (तूँ / तोहन्हीं/ तोहन्हीं सब) <strong><span style="color:#3333ff;">हीं/ हकहीं</span></strong><br />(2) आदरार्थ - (तूँ / तोहन्हीं/ तोहन्हीं सब) <strong><span style="color:#3333ff;">ह/ हकऽ , हू / हकहू , हो / हकहो</span></strong><br />(3) आदरार्थ या अनादरार्थ सहायक क्रिया के रूप में - <strong><span style="color:#3333ff;">ह/ हँ<br /></span></strong><br />यहाँ आदरार्थ का मतलब है - मध्यम स्तर के आदर के लिए प्रयोग, जो साधारणतः परिवार/ रिश्तेदार के उम्र में बड़े पुरुषों (जैसे - पिता, चाचा, दादा, आदि) या उनके समकक्ष के साथ किया जाता है । परिवार/ रिश्तेदार को छोड़ अन्य पुरुष या स्त्री (चाहे उम्र में अधिक हो या कम) के लिए भी साधारणतः आदरार्थ प्रयोग होता है ।<br /><br />साधारणतः परिवार/ रिश्तेदार की उम्र में बड़ी स्त्रियों (जैसे - माँ, चाची, मौसी, दादी, नानी आदि) के साथ अनादरार्थ क्रिया का ही प्रयोग होता है ।<br /><br />किसी अनजान बुजुर्ग या हैसियत और इज्जत में बड़े लोगों को उच्च दर्जे का आदर दिया जाता है और "<strong><span style="color:#ff0000;">तूँ</span></strong>" के स्थान पर "<strong><span style="color:#ff0000;">अपने</span></strong>" (= आप) शब्द का प्रयोग होता है । इसके लिए देखें - हिन्दी में "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप ।<br /><br /><strong>1.4.1</strong> जैसा कि अनुच्छेद 1.1.2 में लिखा जा चुका है, सामान्य कथन में (as a general statement) <strong><span style="color:#ff0000;">ककार रहित रूप</span></strong> का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ <strong><span style="color:#ff0000;">ककार सहित रूप</span></strong> का प्रयोग किया जाता है ।<br /><br /><strong>1.4.2 हीं/ हकहीं के प्रयोग</strong>- अनादरार्थ मध्यम पुरुष में<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में , जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ तो अभी बुतरू हीं / हकहीं, तोरा अभी ई बात नयँ समझ में अयतउ</span></strong> - तुम तो अभी बच्चे हो, तुम्हें अभी यह बात समझ में नहीं आयेगी ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">(तूँ) काहाँ हीं / हकहीं, जल्दी आहीं न</span></strong> - (तुम) कहाँ हो, जल्दी आओ न ।<br />तूँ हीं / हकहीं न हियाँ, हम्मर कीऽ जरूरत हइ / हकइ ? - तुम हो न यहाँ, मेरी क्या जरूरत है ?<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ / तोहन्हीं पढ़ऽ हीं/ हकहीं</span></strong> – तुम / तुमलोग पढ़ते/ पढ़ती हो ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ कीऽ करऽ हीं/ हकहीं ?</span></strong> - तुम क्या करते / करती हो ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ तो घर के सब्हे काम-काज देखऽ हीं/ हकहीं</span></strong> - तुम तो घर के सब काम-काज देखते / देखती हो ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ दिन भर कीऽ करते रहऽ हीं/ हकहीं ?</span></strong> - तुम दिन भर क्या करते रहते/ रहती हो ?<br /><br /><strong>1.4.3 ह/ हकऽ , हू / हकहू , हो / हकहो</strong> के प्रयोग- आदरार्थ मध्यम पुरुष में<br />ह/ हकऽ , हो / हकहो, हू / हकहू में आदर का भाव बढ़ते क्रम में है । साधारणतः ह/ हकऽ का प्रयोग कम उम्र के लोगों के लिए, हो / हकहो रिश्तेदार के बाहर के समान उम्र वालों के लिए एवं रिश्तेदार के उम्र में अधिक व्यक्ति के लिए और हू / हकहू का प्रयोग रिश्तेदार के बाहर के बुजुर्गों के लिए किया जाता है । बच्चों के साथ प्यार प्रदर्शित करने के लिए किसी भी रूप का प्रयोग किया जा सकता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br />इस रूप में साधारणतः "हो" का प्रयोग नहीं होता (अन्य प्रयोग के लिए देखें - ‘हिन्दी में "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप’ के अन्तर्गत "हो/ हको" के प्रयोग)।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">गाँव में तूहीं अदमी ह / हकऽ, जेकरा पर हम आँख मून के बिसवास कर सकऽ ही आउ बिना कोय डर-भय के बात कर सकऽ ही</span></strong> - गाँव में आप ही (एक भले) व्यक्ति/ इंसान हैं, जिस पर मैं आँख मूँद कर विश्वास कर सकता हूँ और बिना किसी डर-भय के बात कर सकता हूँ । (यहाँ, गाँव में कई गुटों में बँटे लोगों में से एक गुट का हैसियत में बड़ा व्यक्ति एकान्त में लगभग हमउम्र अपेक्षाकृत हैसियत में छोटे एक ऐसे व्यक्ति से बात कर रहा है जो दवाब और धमकी के बाबजूद किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ ।)<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ जब तक हियाँ हकहो तब तक हमन्हीं लगि कोय चिन्ता के बात नयँ हइ / हकइ</span></strong> - आप जब तक यहाँ हैं तब तक हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं है ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तूँ जब तक हियाँ हू / हकहू तब तक हमन्हीं लगि कोय चिन्ता के बात नयँ हइ / हकइ</span></strong> - आप जब तक यहाँ हैं तब तक हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं है ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">कन्ने जा ह/ हकऽ , आवऽ , बइठऽ न; तोरा से कुछ बात करे के हइ/ हकइ</span></strong> - कहाँ जा रहे हैं, आइये, बैठिये न; आपसे कुछ बात करनी है । (इस प्रसंग में वक्ता अपने से कम उम्र के लड़के को बोल रहा है ।)<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">काहाँ जा हू / हकहू ?</span></strong> - (आप) कहाँ जा रहे / रही हैं ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">बाउ (जी), काहाँ जा हो/ हकहो ?</span></strong> - पिता जी, (आप) कहाँ जा रहे हैं ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बाबा, काहाँ जा हो/ हकहो ?</span></strong> - दादा जी, (आप) कहाँ जा रहे हैं ?<br /><br />नोट: मगही में "<strong><span style="color:#ff0000;">बाबाजी</span></strong>" का प्रयोग (अकसर कम पढ़े-लिखे या बिलकुल अनपढ़) ब्राह्मण के लिए किया जाता है । अतः साधारणतः बच्चे अपने दादा को कभी "<strong><span style="color:#ff0000;">बाबाजी</span></strong>" कहकर सम्बोधित नहीं करते । परन्तु, अपने पिता को सम्बोधित करने के लिए "बाउ" के साथ-साथ अधिक आदर के लिए "जी" भी साथ में जोड़ देते हैं ।<br /><br /><strong>1.4.4 ह/ हँ के प्रयोग-</strong> आदरार्थ या अनादरार्थ मध्यम पुरुष में<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">(</span><span style="color:#3333ff;">तूँ) कीऽ कर रहलहीं ह/ हँ ?</span></strong> - तुम क्या कर रहे / रही हो ? (देखें – <strong>‘हिन्दी में "है" के लिए मगही के क्रिया रूप’</strong> के अन्तर्गत "<span style="color:#ff0000;"><strong>ह</strong></span>" के प्रयोग ।)<br /><strong><span style="color:#3333ff;">(तूँ) काहाँ से आ रहलहीं ह/ हँ ?</span></strong> - तुम कहाँ से आ रहे / रही हो ?<br /></div>नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-37708490146107923012009-09-28T22:50:00.000-07:002009-09-28T23:18:47.375-07:001.3 हिन्दी के "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप<div align="justify"><strong><span style="color:#ff0000;">1.3 हिन्दी के "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप</span></strong></div><div align="justify"></div><div align="justify">हिन्दी में वर्तमान काल में "हैं" का प्रयोग उत्तम पुरुष बहुवचन, अन्य पुरुष बहुवचन और मध्यम पुरुष के "आप" (वस्तुतः इसके लिए क्रिया का प्रयोग अन्य पुरुष के रूप में किया जाता है) के साथ किया जाता है । मगही में "हैं" के लिए कई रूप होते हैं जो इस प्रकार हैं –<br /><br />(हम) हैं – (हम, हमन्हीं/ हम सब) <strong><span style="color:#3333ff;">हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ<br /></span></strong><br />(आप) हैं – (अपने) <strong><span style="color:#3333ff;">हथिन</span></strong><br /><br />[वे, वे लोग (आदरार्थी)] हैं – (ऊ, ऊ सब/ ऊ लोग/ ओकन्हीं) <strong><span style="color:#3333ff;">हका; हथन, हथिन, हथुन;</span></strong> <strong><span style="color:#ff0000;">हखन, हखिन, हखुन;</span> <span style="color:#cc0000;">-, हथी, हथू</span> ; <span style="color:#cc33cc;">-, हखी, हखू<br /></span><br /></strong>कभी-कभी <strong><span style="color:#3333ff;">हथन, हथिन, हथुन</span></strong> के स्थान पर <strong><span style="color:#ff0000;">हखन, हखिन, हखुन</span></strong> का प्रयोग सुनाई देता है । कभी-कभी <strong><span style="color:#3333ff;">हथिन, हथुन</span></strong> के स्थान पर <strong><span style="color:#990000;">हथी, हथू</span></strong> या <strong><span style="color:#cc33cc;">हखी, हखू</span></strong> भी सुनाई देता है ।<br /><br />"वे" अगर अनादरार्थ प्रयुक्त हो तो हिन्दी में बहुवचन होते हुए भी बिहारशरीफ की मगही में इसके लिए क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है । देखें पूर्व लेख - हिन्दी के "है" के लिए मगही क्रिया रूप ।<br /><br />1.3.1 जैसा कि अनुच्छेद 1.1.2 में लिखा जा चुका है, सामान्य कथन में (as a general statement) <strong><span style="color:#ff0000;">ककार रहित रूप</span></strong> का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ <strong><span style="color:#ff0000;">ककार सहित रूप</span></strong> का प्रयोग किया जाता है । यही बात <strong><span style="color:#3333ff;">हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ</span></strong> में भी लागू होती है ।<br /><br />1.3.2 <strong>हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ</strong> के प्रयोगः इसके लिए देखें - <strong><span style="color:#cc33cc;">1.2 हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया रूप ।</span></strong><br /><br /><strong>1.3.3 मध्यम पुरुष में (आप) "हैं" अर्थ में हमेशा (अपने) "<span style="color:#ff0000;">हथिन</span>" का प्रयोग होता है ।<br /></strong><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में,<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">अपने केऽ हथिन ?</span></strong> - आप कौन हैं ?<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में,<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">अपने काहाँ रहऽ हथिन ?</span></strong> - आप कहाँ रहते हैं ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">अपने कीऽ करऽ हथिन ?</span></strong> - आप क्या करते हैं ?<br /><br /><strong>1.3.4</strong> अन्य पुरुष में एक या अनेक व्यक्ति को <strong>मध्यम दर्जे का आदर-भाव</strong> व्यक्त करना हो तो "<strong><span style="color:#ff0000;">हका</span></strong>" का प्रयोग होता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में,<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ कीऽ शेर <span style="color:#ff0000;">हका</span> जे हमरा खा जइता ? -</span></strong> वे क्या शेर हैं जो हमें खा जायेंगे ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ई समूचे शहर में हीरा के सबसे बड़गर व्यापारी <span style="color:#ff0000;">हका</span> ।</span></strong> - ये समूचे शहर में हीरा के सबसे बड़े व्यापारी हैं ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में,<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ कीऽ करऽ <span style="color:#ff0000;">हका</span> ?</span></strong> - वे क्या करते हैं ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ जेतना बतइलका ओरा से कहीं अधिक उनका ई कतल के बारे मालूम हइ । जे हमरा चाही ऊ छिपाके रखले <span style="color:#ff0000;">हका</span> ।</span></strong> - उन्होंने जितना बताया उससे कहीं अधिक उन्हें इस कत्ल के बारे मालूम है । जो हमें चाहिए वो छिपाके रखे हुए हैं ।<br /><br /><strong>1.3.5 हथन, हथिन, हथुन के प्रयोग:</strong> इसका प्रयोग <strong>उच्च दर्जे का आदर-भाव</strong> व्यक्त करने के लिए किया जाता है । पूर्व रूपों के समान ही इसका भी मुख्य या सहायक क्रिया के रूप में प्रयोग होता है ।<br /><br />हथन, हथिन, हथुन का प्रयोग ठीक से समझने के लिए प्रसंग समझना आवश्यक है ।<br /><br />(१) प्रसंगः एक आदमी एक घर जाकर दरवाजे पर दस्तक देता है । एक बच्चा दरवाजा खोलता है । वह आदमी बच्चे से बातचीत करता है ।<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">बाऊ घरे <span style="color:#ff0000;">हथुन</span> बुआ ?</span></strong> - (तेरे) बाबूजी घर पर ही हैं, बबुआ ?<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">नयँ, नयँ <span style="color:#ff0000;">हथुन</span> ।</span></strong> - नहीं, नहीं हैं ।<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">कखने अयथुन ?</span></strong> - कब आयेंगे ?<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">साँझ तलक अयथुन ।</span></strong> - साँझ तक आयेंगे ।<br /><br />ध्यातव्यः इस प्रसंग में प्रश्न और उत्तर दोनों में केवल "-<strong><span style="color:#ff0000;">थुन</span></strong>" का प्रयोग होता है।<br /><br />(२) प्रसंगः एक आदमी एक प्रोफेसर साहब के घर के दरवाजे पर जाकर दस्तक देता है । एक महिला दरवाजा खोलती है । वह आदमी महिला से बातचीत करता है ।<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">प्रो॰ साहब घरे <span style="color:#ff0000;">हथिन</span> ?</span></strong> - प्रो॰ साहब घर पर ही हैं ?<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">नयँ, नयँ <span style="color:#ff0000;">हथुन</span> ।</span></strong> - नहीं, नहीं हैं ।<br />- <span style="color:#3333ff;"><strong>कखने अयथिन ?</strong></span> - कब आयेंगे ?<br />- <strong><span style="color:#3333ff;">बिहान अयथुन ।</span></strong> - कल आयेंगे ।<br /><br />ध्यातव्यः इस प्रसंग में <strong><span style="color:#990000;">प्रश्न में</span></strong> केवल "-<strong><span style="color:#ff0000;">थिन</span></strong>" और <strong><span style="color:#990000;">उत्तर में</span></strong> केवल "-<span style="color:#ff0000;"><strong>थुन</strong></span>" का प्रयोग होता है।<br /><br />अब हम डॉ॰ राम प्रसाद सिंह रचित मगही उपन्यास "<strong>नरक सरग धरती</strong>" से कुछ उद्धरण बिहारशरीफ की मगही में प्रस्तुत करते हैं ।<br /><br />(3) प्रसंगः खदेरन नामक अधेड़ उम्र का आदमी सुक्खू के मिल में काम करता है । वहाँ दुर्घटना घटने के कारण घायल होकर बेहोश हो जाता है । खदेरन को टाँगकर लोग डॉक्टर के पास लाते हैं । वह खदेरन का इलाज करता है । बेला नामक नर्स भी उसकी सेवा में खड़ी है । खदेरन की नींद खुलती है तो वह चिल्ला उठता है (पृ॰ १२७) -<br /><strong>- अरे सुक्खू बेटा, अब नयँ बचवउ । चाची के ठीक से रखिहँ ।<br />- चचा, तू अभी न मरबऽ । तनी गोड़ में चोट लग गेलो ह, बिहान तलक ठीक हो जइतो ।<br />- न बेटा, हम्मर कपार उड़ल जा रहलो ('रहलउ' के संक्षिप्त रूप) ह । आउ ई बगल में उज्जर लुग्गा पेन्हले के खड़ा हकइ ? एहे हम्मर गोड़ तोड़ देलक ह । एकरा हिआँ से जल्दी भगाव ।<br />- ई अस्पताल के नर्स <span style="color:#ff0000;">हथिन</span> चचा । ई तो तोर सेवा में लगल <span style="color:#ff0000;">हथुन</span> ।<br /><br /></strong>ध्यातव्यः इस प्रसंग में परिचय देते समय केवल "-<strong><span style="color:#3333ff;">थिन</span></strong>" का प्रयोग होता है । परिचय हो चुकने के बाद नर्स और रोगी का सीधा सम्बन्ध निर्दिष्ट होने के कारण केवल "-<span style="color:#3333ff;"><strong>थुन</strong></span>" का प्रयोग होता है।<br /><br />(4) प्रसंगः गाँव में दलित लोगों का नेता रग्घू दलितों को खेतिहर महतो लोगों के विरोध में भड़काकर अल्हैत दल का निर्माण करता है और नक्सलाइट लोगों को आमन्त्रित कर शाम को आल्हा के जरिये नक्सलाइट का ट्रेनिंग दिलवाता है । उनका काम शाम को मनोरंजन करना और रात को महतो के खेत की फसल चुराना होता है । जमुना नामक युवक भी अल्हैत दल का एक सदस्य है, हालाँकि उसे यह चोरी-तोरी का काम पसन्द नहीं है । इधर ईसरी महतो के नेतृत्व में एक कमासुत दल का भी निर्माण होता है जिसमें गरीब तबके के लोग भी होते हैं । इस दल का काम परिश्रम से कमाकर खाना होता है और गाँव के जरूरतमंद लोगों की आवश्यक मदद करनी होती है ।<br /><br />गाँव के जमींदार वर्मा साहब की बेटी सुषमा की शादी महतो के लड़के नगीना से हो जाती है । नगीना कॉलेज तक पढ़ा-लिखा नवयुवक है । परन्तु शहर की नौकरी छोड़-छाड़कर वह खुद खेती करना चालू करता है और सुषमा भी उसके साथ इस कार्य में हाथ बँटाती है ।<br /><br />नगीना के बारे में जमुना के सामने रग्घू टिप्पणी करता है (पृ॰ १५६-१५७) -<br /><strong>"पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो ये किसमत के खेल ।" कहके रग्घू जमुना दने ताकलक आउ ई भरल बरसात में भी जुत्ता मचमचइते पक्का सड़क धैले घरे जाय लगल । जमुना बोलल - "केतनो <span style="color:#ff0000;">हथिन</span> तो मलकाने घराना के न <span style="color:#ff0000;">हथिन</span> हो । अइसे काहे बोलऽ हीं ?"<br />........<br />"अरे इनसाल ई अपने खेती नयँ करता हल त हमन्हिंयें न उनकर सब खेत जोत लेतिये हल । फोकट में बीस बिगहा खेत हमन्हीं के मिल जात हल ।"<br />"आउ महतो लोग टुकुर-टुकुर देखते रह <span style="color:#3333ff;">जइथुन</span> हल ? उनका पास अपने कमासुत दल हइ जे बीस कीऽ, सो बिगहा खेती कर सकऽ हइ ।"<br />"अरे, हमर नेकलाइट के फौज जुटते हल त सब कमासुत दल भुला जइता हल ।"<br />"तहिना तो नेकलाइट के नेता <span style="color:#3333ff;">कहलथुन</span> हल कि महतो तोहनी के भाई-बन्धु हो सकऽ <span style="color:#ff0000;">हथुन</span>, विरोधी थोड़े <span style="color:#ff0000;">हथुन</span> ? दस-बीस बिगहा जोते वला कहऊँ जमीदार होवऽ हइ ?”<br />“हमनी के गाँव में तो ओहे न जमीदार <span style="color:#ff0000;">हथन</span> । केकरा से लड़े जाम ?”<br />“काहे ? लड़े ल दोसर जमीदार न <span style="color:#ff0000;">हथिन</span> ? उकी बगले के गाँव में दू-दू चर-चर सौ बिगहा जोते वलन <span style="color:#ff0000;">हथन</span>, जिनकर आधा से जादे खेत परीत रह जा हइ । जो, उनकर खेत जोत-कोड़ आउ दखल कराव तब न जनवउ ?”<br /></strong></div>नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-90362981625958467112009-09-23T22:37:00.000-07:002009-09-24T05:00:24.157-07:001.2 हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया रूप<strong><span style="color:#ff0000;">1.2 हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया रूप</span><br /></strong><br />मगही में "मैं" शब्द नहीं । इसके लिए "हम" का ही प्रयोग होता है ।<br /><br />मगही में “(मैं) <strong><span style="color:#3333ff;">हूँ</span></strong> " के लिए कई रूप होते हैं जो इस प्रकार हैं –<br /><br />(हम) <strong><span style="color:#3333ff;">ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ<br /></span></strong><br /><strong>1.2.1</strong> जैसा कि अनुच्छेद 1.1.2 में लिखा जा चुका है, सामान्य कथन में (as a general statement) <strong><span style="color:#ff0000;">ककार रहित रूप</span></strong> का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ <strong><span style="color:#ff0000;">ककार सहित रूप</span></strong> का प्रयोग किया जाता है । यही बात <strong><span style="color:#3333ff;">ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ</span></strong> में भी लागू होती है ।<br /><br /><strong>1.2.2 ही / हूँ / हकूँ के प्रयोगः<br /></strong><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में<br /><br />इस रूप में साधारणतः "हकूँ" का प्रयोग होता है । "हूँ" का प्रयोग सुनाई नहीं देता, जबकि "ही" का प्रयोग कम होता है ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू चोर हँ ।</span></strong> - तू चोर है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">नयँ, हम चोर नयँ हकूँ ।</span></strong> - नहीं, मैं चोर नहीं हूँ ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">नयँ, हम चोर नयँ ही ।</span></strong> - नहीं, मैं चोर नहीं हूँ ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में,<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ही / हूँ / हकूँ</span></strong> में से सभी का प्रयोग होता है ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम चोरी-तोरी के काम नयँ करऽ ही ।</span></strong> - मैं चोरी-वोरी का काम नहीं करता (हूँ) ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम चोरी-तोरी के काम नयँ करऽ हूँ ।</span></strong> - मैं चोरी-वोरी का काम नहीं करता (हूँ) ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम चोरी-तोरी के काम नयँ करऽ हकूँ ।</span></strong> - मैं चोरी-वोरी का काम नहीं करता (हूँ) ।<br /><br />तीनों वाक्यों में अर्थ में थोड़ा अन्तर है और वह है - <strong><span style="color:#3333ff;">ही / हूँ / हकूँ</span></strong> में क्रिया पर जोर (stress) बढ़ते क्रम में है ।<br /><br /><strong>1.2.3 हिअइ/ हकिअइ के प्रयोगः<br /></strong><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम तो अभी बुतरू हिअइ / हकिअइ</span></strong> - मैं तो अभी बच्चा हूँ ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम कौलेज के छातर हिअइ / हकिअइ</span></strong> - मैं कॉलेज का छात्र हूँ ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे –<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम पढ़ऽ हिअइ/ हकिअइ</span></strong> - मैं पढ़ता/ पढ़ती हूँ ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम कौलेज जा हिअइ/ हकिअइ</span></strong> - मैं कॉलेज जाता/ जाती हूँ ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम दिन भर काम करते रहऽ हिअइ/ हकिअइ</span></strong> - मैं दिन भर काम करते रहता/ रहती हूँ ।<br /><br />नोटः "<strong><span style="color:#3333ff;">हम जा ही / हूँ / हकूँ</span></strong>", "<strong><span style="color:#3333ff;">हम करऽ ही / हूँ / हकूँ</span></strong>" और "<strong><span style="color:#cc0000;">हम जा हिअइ / हकिअइ</span></strong>", "<strong><span style="color:#cc0000;">हम करऽ हिअइ / हकिअइ</span></strong>" - इन दो प्रकार के वाक्यों का हिन्दी अनुवाद समान है - "मैं जाता / जाती हूँ", "मैं करता / करती हूँ" । परन्तु मगही में इन दोनों वाक्यों के अर्थ में अन्तर है । मगही में अर्थों के सूक्ष्म अन्तर को समझने के लिए निम्नलिखित वाक्य पर गौर करें ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम जा ही / हूँ / हकूँ</span></strong> <strong><span style="color:#cc0000;">(, तूहूँ चलऽ हँ ?)</span></strong> - मैं जाता हूँ (, तू भी चलेगा ?)<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम जा हिअइ / हकिअइ</span></strong> <strong><span style="color:#cc0000;">(, अनुमति देथिन)</span></strong> - मैं जाता हूँ (, अनुमति दीजिए) ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम ई सब काम नयँ करऽ ही / हूँ / हकूँ</span></strong> - मैं यह सब काम नहीं करता ।<br />इस वाक्य से यह अर्थ निकलता है कि यह सब काम खराब या घृणित है ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम ई सब काम नयँ करऽ हिअइ / हकिअइ</span></strong> - मैं यह सब काम नहीं करता ।<br />इस वाक्य से यह अर्थ निकलता है कि चूँकि यह सब काम मैं नहीं करता, अतः यह सब काम आप किसी और से करवा ले सकते हैं । इस प्रसंग में काम घृणित या खराब है, ऐसा अर्थ बिलकुल नहीं निकलता । या यह वाक्य साधारण तौर पर एक नकारात्मक वाक्य (negative sentence) है ।<br /><br />एक दूसरे वाक्य पर गौर करें ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम एरा / एकरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ हिअइ / हकिअइ तो ओरा / ओकरा बतइअइ कीऽ ?</span></strong> - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं तो उसे बताऊँ क्या ?<br />इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता किसी श्रोता से स्पष्ट रूप से बात कर ऐसी सूचना दे रहा है । वक्ता के इस कथन में गुस्सा झलकता है कि वह व्यर्थ ही कोई बात पूछ रहा है जो यह जानता ही नहीं ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम एरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ ही / हूँ / हकूँ तो ओरा बतामूँ कीऽ ?</span></strong> - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं तो उसे बताऊँ क्या ?<br />इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता के पास कोई श्रोता नहीं है, बल्कि वह ऐसा मन में सोच रहा है । या श्रोता तो है जिसे वह ऐसी सूचना दे रहा है, परन्तु उसके कथन में लाचारी झलकती है कि बात नहीं बता पाने के कारण व्यर्थ में उससे कष्ट झेलना पड़ रहा है ।<br /><br />हिन्दी वाक्य में ऐसे सूक्ष्म अन्तर जान पाना बिना पूरा प्रसंग जाने सम्भव नहीं है ।<br /><br /><strong>1.2.4 हियो/ हकियो के प्रयोगः</strong> इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम एज्जे हियो/ हकियो, तोरा घबराय के कोय बात नयँ हको</span></strong> - मैं यहीं हूँ, आपको घबराने की कोई बात नहीं है ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम अब चलऽ हियो/ हकियो, बिहान फेर अइबो</span></strong> - अब मैं चलता हूँ, कल फिर आऊँगा ।<br /><br /><strong>1.2.5 हिअउ/ हकिअउ के प्रयोगः</strong> इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है ।<br /><br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम एज्जे हिअउ/ हकिअउ, तोरा घबराय के कोय बात नयँ हकउ</span></strong> - मैं यहीं हूँ, तुझे घबराने की कोई बात नहीं है ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम अब चलऽ हिअउ/ हकिअउ, बिहान फेर अइबउ</span></strong> - अब मैं चलता हूँ, कल फिर आऊँगा ।नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-70795359616781106332009-09-06T17:28:00.000-07:002009-11-24T01:42:03.325-08:001.1 हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप<div align="justify">पाठकों, विशेषकर मगही-भाषियों, से निवेदन है कि मगही व्याकरण सम्बन्धी मेरे सन्देशों पर कोई टिप्पणी करने के पहले वे कृपया इस ब्लॉग की <a href="http://magahi-vyakaran.blogspot.com/2009/06/1.html">भूमिका</a> एक बार अवश्य देख लें ।<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">मगही में क्रिया का रूप संज्ञा के लिंग (gender) पर निर्भर नहीं करता ।</span></strong> उदाहरण के लिए -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">लड़का जा हइ</span></strong> - लड़का जाता है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">लड़की जा हइ</span></strong> - लड़की जाती है ।<br /><br /><strong>1. 'ह' (to be) धातु के वर्तमानकाल के रूप</strong><br />डॉ॰ ग्रियर्सन ने 'ह' धातु के स्थान पर "अह्" धातु माना है ("Seven Grammars ...", Part III, p.31) । शायद उन्होंने संस्कृत के "अस्" धातु के सकार को हकार में परिवर्तित करके मगही का धातु स्वीकार कर लिया है । डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी ने डॉ॰ ग्रियर्सन का अनुसरण किया है ("मगही व्याकरण प्रबोध", पृ॰107) । लेकिन डॉ॰ ग्रियर्सन का यह भी कहना है - "Note that throughout the initial अ of the root has disappeared" (वही, पृ॰31) । इस हालत में " अह् " के बदले "ह" धातु मानना ही उचित है ।</div><p align="justify"><strong>'ह' (to be) धातु के वर्तमानकाल के रूप</strong></p><p align="justify">(हम) <strong><span style="color:#3333ff;">ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ<br /></span></strong><br />(तूँ - तू अर्थ में) <strong><span style="color:#3333ff;">हँ/ हकँऽ<br /></span></strong>(तूँ - तुम अर्थ में, अनादरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">हीं/ हकहीं</span><br /></strong>(तूँ - तुम अर्थ में, आदरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">ह/ हकऽ, हू / हकहू , हो / हकहो</span></strong><br />(अपने) <strong><span style="color:#3333ff;">हथिन</span></strong><br /><br />(ऊ - अनादरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">ह, हइ/ हकइ, हउ/ हकउ, (हे/) हके, हो/ हको, हन/ हकन</span></strong><br />(ऊ - आदरार्थ) <strong><span style="color:#3333ff;">हका; हथन, हथिन, हथुन; <span style="color:#ff0000;">हखन, हखिन, हखुन;</span> <span style="color:#990000;">-, हथी, हथू ;</span> </span><span style="color:#cc33cc;">-, हखी, हखू<br /></span></strong><br /><strong>1.1 हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप</strong><br /><br /><strong>1.1.1 हिन्दी में "है" का प्रयोग</strong> अन्य पुरुष एकवचन (third person singular number) एवं मध्यम पुरुष एकवचन (second person singular number) अनादरसूचक "तू" के साथ किया जाता है । मगही में "तू" या "तूँ" अनादर सूचक भी हो सकता है या आदरार्थ भी । अतः क्रिया के रूप से ही स्पष्ट होता है कि इसका प्रयोग आदरार्थ है या अनादरार्थ । मगही में अनादरार्थ प्रयुक्त अन्य पुरुष बहुवचन कर्ता के साथ भी क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है, अर्थात् हिन्दी के "है" के ही संगत (corresponding) मगही रूप का प्रयोग होता है, "हैं" का नहीं ।<br /><br />हिन्दी के "<strong><span style="color:#ff0000;">है</span></strong>" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –<br />(1) अन्य पुरुष एकवचन में - <strong><span style="color:#3333ff;">ह, हइ/ हकइ, हउ/ हकउ, (हे/) हके, हो/ हको, हन/ हकन</span></strong> ।<br />(2) अनादरार्थ प्रयुक्त "तू" या "तूँ" के साथ - <strong><span style="color:#3333ff;">हँ/ हकँऽ</span></strong> ।<br /><br />नोटः जब मगही के "तू" या "तूँ" का प्रयोग हिन्दी के "तुम" अर्थ में किया जाता है तो "<strong><span style="color:#3333ff;">हँ/ हकँऽ</span></strong>" के स्थान पर "<strong><span style="color:#3333ff;">हीं/ हकहीं</span></strong>" का प्रयोग होता है ।<br /><br /><strong>1.1.2</strong> सामान्य कथन में (as a general statement) <strong><span style="color:#ff0000;">ककार रहित रूप</span></strong> का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ <strong><span style="color:#ff0000;">ककार सहित रूप</span></strong> का प्रयोग किया जाता है ।<br /><br /><strong>1.1.3 'ह' का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग साधारणतः सातत्यबोधक (continuous) या पूर्ण (perfect) वर्तमानकाल (present tense) में भूतकाल (preterite) रूप के बाद सहायक क्रिया (auxiliary verb) के रूप में होता है । यह पुरुष और वचन (person and number) पर निर्भर नहीं करता अर्थात् हिन्दी में "वे कहाँ जा रहे हैं" जैसे वाक्यों में "रहे" और "हैं" क्रिया के दो-दो बहुवचन रूप प्रयुक्त होते हैं वहाँ मगही में यह बात नहीं । मगही में "हैं" के स्थान पर "है" का ही संगत रूप प्रयुक्त होता है, बहुवचन का संकेत भूतकाल रूप से ही प्राप्त हो जाता है । परन्तु यदि भूतकाल रूप अनुनासिकान्त हो तो इसका प्रभाव इसके ठीक बाद आनेवाले "<strong><span style="color:#3333ff;">ह</span></strong>" पर भी पड़ता है जिसके कारण अकसर इसके स्थान पर "<strong><span style="color:#3333ff;">हँ"</span></strong> सुनाई देता है और यदि अनुनासिकान्त ध्वनि "<strong><span style="color:#ff0000;">अँ</span></strong>" हो तो केवल "<strong><span style="color:#ff0000;">हँ</span></strong>" ही सुनाई देता है ।<br /><br />उदाहरण -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ काहाँ जा रहले ह ?</span></strong> - वह कहाँ जा रहा है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बुतरुआ कीऽ कर रहले ह ?</span></strong> - बच्चा क्या कर रहा है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ काहाँ गेले ह ?</span></strong> - वह कहाँ गया/ गई है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ कीऽ कइलके ह ?</span></strong> - उसने क्या किया है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">सामा ओकरा बड़ी मार मरलके ह</span></strong> - श्याम ने उसे बहुत मार मारा है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ई चिठिया कोय पढ़लके ह ?</span></strong> - इस चिट्ठी को किसी ने पढ़ा है ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ सब <span style="color:#ff0000;">(अनादरार्थ)</span> काहाँ जा रहले ह ?</span></strong> - वे सब कहाँ जा रहे हैं ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बुतरुअन <span style="color:#ff0000;">(अनादरार्थ)</span> कीऽ कर रहले ह ?</span></strong> - बच्चे क्या कर रहे हैं ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ सब <span style="color:#ff0000;">(आदरार्थ)</span> काहाँ जा रहलथिन ह/ हँ ?</span></strong> - वे सब कहाँ जा रहे हैं ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">बुतरुअन <span style="color:#ff0000;">(आदरार्थ या प्यार सूचक)</span> कीऽ कर रहलथिन ह/ हँ ?</span></strong> - बच्चे क्या कर रहे हैं ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ कर रहलहो ह ?</span></strong> - आप क्या कर रहे हैं ?<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ कर रहलँऽ हँ ?</span></strong> - तू क्या कर रहा है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ कइलँऽ हँ ?</span></strong> - तूने क्या किया है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ ई कितब्बा पढ़लँऽ हँ ?</span></strong> - तूने यह किताब पढ़ी है ?<br /><br />परन्तु,<br /><strong><span style="color:#3333ff;">अरे ! ऊ कीऽ कइले हइ/ हकइ ? जल्दी से बोला न ओकरा ।</span></strong> - अरे ! वह क्या कर रहा है ? जल्दी से बुलाओ न उसे ।<br /><br />इस उदाहरण में "<strong><span style="color:#ff0000;">कइले</span></strong>" का सातत्य वर्तमान (present continuous) के अर्थ में कुछ अधीरता, जल्दीबाजी, उत्सुकता या सावधानी अर्थ भी समाहित होता है । इस प्रकार के उदाहरण में <strong><span style="color:#ff0000;">'कइले'</span></strong> शब्द वस्तुतः भूत कृदन्त (past participle) <strong><span style="color:#3333ff;">'कइल'</span></strong> से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है - "<strong><span style="color:#990000;">किया हुआ</span></strong>" । यह शब्द सभी पुरुष और वचन में समान अर्थात् अविकृत रूप में रहता है और इसके बाद होना क्रिया का रूप ही पुरुष और वचन के अनुसार बदलता है (<strong><span style="color:#3333ff;">हइ, हउ, हको</span></strong> इत्यादि) । "<strong><span style="color:#ff0000;">कइले</span></strong>" का "<strong><span style="color:#990000;">किया हुआ</span></strong>" अर्थ में भी प्रयोग होता है, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ कीऽ कइले हइ/ हकइ ?</span></strong> - उसने क्या किया हुआ है ? (ऐसा सवाल योग्यता के बारे में हो सकता है, जैसे कि वह मैट्रिक किया हुआ है, या बी॰ए॰, एम॰ए॰, बी॰टेक्॰, ...?)<br /><br /><strong>1.1.4 हइ/ हकइ के प्रयोग</strong>- अन्य पुरुष एकवचन में<br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में , जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ तो अभी बुतरु हइ/ हकइ</span></strong> - वह तो अभी बच्चा है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">किरिसना छातर हइ/ हकइ</span></strong> - कृष्ण छात्र है ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ पढ़ऽ हइ/ हकइ</span></strong> - वह पढ़ता/ पढ़ती है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मंजुआ कीऽ करऽ हइ/ हकइ ?</span></strong> - मंजु क्या करती है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मंजुआ घर के काम-काज देखऽ हइ/ हकइ</span></strong> - मंजु घर का काम-काज देखती है ।<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ दिन भर कीऽ करते रहऽ हइ/ हकइ ?</span></strong> - वह दिन भर क्या करते रहता/ रहती है ?<br /><br /><strong>1.1.5 हउ/ हकउ का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है । जैसे –<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तोरा पढ़े-लिक्खे आवऽ हउ/ हकउ ?</span></strong> - तुझे पढ़ना-लिखना आता है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तोर बेटवा कीऽ करऽ हउ/ हकउ ?</span></strong> - तुम्हारा बेटा क्या करता है ?<br /><br />इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता है' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में क्रिया 'हउ' या 'हकउ' श्रोता के अनुसार है जो हैसियत या ओहदा में वक्ता से बहुत नीचे है !<br /><br /></p><div align="justify"><strong>1.1.6 (हे/) हके का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग "हम" के साथ किसी अन्यपुरुष के व्यक्ति, वस्तु आदि के लिए किया जाता है । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हमरा ओरा / ओकरा से कोय मतलब नयँ हके</span></strong> - हमें उससे कोई मतलब नहीं है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हम्मर ऊ केऽ हके ?</span></strong> - मेरा वह कौन (लगता) है ? (अर्थात् मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं ।)<br /><br /><strong><span style="color:#3333ff;">- ई तोर केऽ लगऽ हउ जे एतना परेशान हो रहलँ हँ ?</span></strong> - यह तेरा कौन लगता है जो तू इतना परेशान हो रहा है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">- ई हम्मर बेटा हके ।</span></strong> - यह मेरा बेटा है ।<br /><br />ऊपर के प्रसंग पर ध्यान दें । यदि कोई सामान्य रूप से परिचय पूछ रहा हो तो "हके" का प्रयोग न होकर "हको" वगैरह का ही प्रयोग होगा ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">- ई तोर केऽ लगऽ हउ ?</span></strong> - यह तेरा कौन लगता है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">- ई हम्मर बेटा हको ।</span></strong> - यह मेरा बेटा है ।<br /><br />यहाँ प्रश्नकर्ता कोई आदरणीय व्यक्ति है जिसकी अपेक्षा सम्बोधित व्यक्ति कम हैसियत वाला है ।</div><div align="justify"><br /><strong><span style="color:#990000;">नोट:</span></strong> "<strong><span style="color:#ff0000;">हके</span></strong>" के संगत ककार रहित रूप "<strong><span style="color:#ff0000;">हे</span></strong>" का प्रयोग मेरे सुनने में नहीं आया ।</div><div align="justify"><br /><strong>1.1.7 हो/ हको का प्रयोग</strong> - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">हमर बेटवा कलकत्ता में चपरासी के काम करऽ हो/ हको</span></strong> - मेरा बेटा कलकत्ता में चपरासी का काम करता है ।<br /><br />इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता है' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में यह बात नहीं है । मगही में क्रिया 'हो' या 'हको' अव्यक्त श्रोता के अनुसार है जो वक्ता की दृष्टि में आदरणीय है !<br /><br />मैं जब शायद हाई स्कूल में पढ़ता था (1960 के दशक के उतरार्द्ध में) तब चुनाव काल में कम्यूनिस्ट पार्टी के एक उम्मीदवार ने जनता के बीच अपने भाषण के दौरान जनसंघ पार्टी के बारे में निम्नलिखित टिप्पणी की थी -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मंगरू काका हो, जुम्मन भइया हो,<br />तनी मन में कर ल सोच-विचार<br />कि जनसंघ हको रंगल सियार<br />कि जनसंघ हको रंगल सियार ।</span></strong><br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">जनसंघ हको रंगल सियार</span></strong> - जनसंघ है रंगा सियार ।<br /><br />इस उदाहरण में हिन्दी में 'है' क्रिया 'जनसंघ' के अनुसार है, परन्तु मगही में आदरार्थ 'हको' क्रिया 'जनसंघ' के अनुसार नहीं, बल्कि 'मंगरु काका' और 'जुम्मन भइया' के अनुसार है जो वक्ता के लिए आदरणीय हैं ।<br /><br /><strong><span style="color:#990000;">नोटः</span></strong><br />१. इस उदाहरण में <strong><span style="color:#3333ff;">'हो'</span></strong> सम्बोधन हिन्दी/ संस्कृत में प्रयुक्त सम्बोधन शब्द <strong><span style="color:#ff0000;">'हे'</span></strong> के अर्थ में प्रयुक्त है । कविता में इस प्रकार <strong><span style="color:#3333ff;">'हो'</span></strong> का प्रयोग चल सकता है, परन्तु आम बोल-चाल में यह सम्बोधन उम्र या हैसियत में छोटे लोगों के लिए ही प्रयुक्त होता है । आदरार्थ सम्बोधन "<strong><span style="color:#3333ff;">जी</span></strong>", "<span style="color:#3333ff;"><strong>अजी</strong></span>" आदि का प्रयोग किया जाता है ।<br /><br />२. यहाँ लय हेतु '<strong><span style="color:#3333ff;">हो</span></strong>' का उच्चारण '<strong><span style="color:#3333ff;">होऽऽ</span></strong>' जैसा और '<strong><span style="color:#3333ff;">हको</span></strong>' का उच्चारण '<strong><span style="color:#3333ff;">हऽऽको</span></strong>' जैसा करना है ।<br /><br /><strong>1.1.8 हन/ हकन का प्रयोग</strong> - यह भी आदरार्थ प्रयोग है । परन्तु, ऐसा प्रयोग किसी चीज या व्यक्ति के बारे में तब किया जाता है जब यह किसी ऐसे आदरणीय व्यक्ति से सम्बन्धित हो जिसे वक्ता सीधे सम्बोधित न कर रहा हो अर्थात् आदरणीय व्यक्ति अन्य पुरुष (third person) के रूप में प्रयुक्त हो । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एगो धनी किसान तो हइये हथिन, भवानीपुर में लोहा सिमेंट के दोकानो हन/ हकन</span></strong> - भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एक धनी किसान तो हैं ही, भवानीपुर में लोहा सिमेंट की दुकान भी है ।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">ऊ दोकान से निमन अमदनी हो जा हन/ हकन</span></strong> - उस दुकान से अच्छी आमदनी हो जाती है ।<br /><br />उपर्युक्त उदाहरणों में हिन्दी में 'है' क्रिया 'दुकान' और 'आमदनी' के अनुसार है । परन्तु मगही में आदरार्थ 'हन' या 'हकन' क्रिया का प्रयोग अत्यन्त आदरणीय 'गोवर्धन शर्मा' जी के अनुसार है !<br /><br /><strong><span style="color:#000000;">1.1.9 हँ/ हकँऽ के प्रयोग</span></strong>- इसका प्रयोग हिन्दी में प्रयुक्त "तू" के समानान्तर मगही में प्रयुक्त अनादरार्थ "तू" या "तूँ" के साथ<br />(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) रूप में किया जाता है । जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ हँ/ हकँऽ</span></strong> - तू है ।<br /><br />(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ कीऽ करऽ हँ/ हकँऽ ?</span></strong> - तू क्या करता है ?<br /><strong><span style="color:#3333ff;">तू / तूँ इस्कूलवा पढ़े जा हँ/ हकँऽ ?</span></strong> - तू स्कूल पढ़ने जाता है ?<br /><br /><strong><span style="color:#990000;">नोटः</span><br />(1) बिहारशरीफ की मगही में "<span style="color:#ff0000;">है</span>" के लिए साधारणतः '<span style="color:#3333ff;">हे</span>' का प्रयोग नहीं होता जैसा कि अकसर प्रकाशित साहित्य में देखा जाता है । बिहारशरीफ के आसपास की मगही में "<span style="color:#3333ff;">हे</span>" का प्रयोग साधारणतः सम्बोधन के रूप में पाया जाता है ।<br /><br />(2) प्रकाशित पत्रिकाओं/ पुस्तकों में “<span style="color:#3333ff;">हन/ हकन</span>” के स्थान में “<span style="color:#3333ff;">हइन/ हकइन</span>” रूप मिलते हैं ।<br /><br /></div></strong>नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9155433843423143616.post-57293136740145934092009-06-05T08:55:00.000-07:002009-11-15T05:08:53.213-08:001. भूमिका<div align="justify">हिन्दी की तुलना में क्रियारूपों की क्लिष्टता ही मगही भाषा का वैशिष्ट्य है । हिन्दी के एक क्रियारूप के लिए अनेक रूप मगही में पाये जाते हैं । परन्तु साधारणतः किसी एक क्षेत्र की मगही में उन रूपों में एक के स्थान पर दूसरे को नहीं रखा जा सकता । अभी तक मेरी दृष्टि में मगही का एक भी ऐसा व्याकरण ग्रन्थ नहीं प्रकाशित हुआ जिसमें इन रूपों की सूक्ष्मता को दर्शाया गया हो । मगही में क्रियारूपों के वैविध्य का कारण यह है कि इसमें क्रिया केवल कर्ता और कर्म के अनुसार ही नहीं, बल्कि इस पर भी निर्भर करता है कि कोई बात जिसको सम्बोधित करके कही जा रही है, वह व्यक्ति आदरणीय है या नहीं । इतना ही नहीं, जिस व्यक्ति या वस्तु के बारे में उसे सम्बोधित कर बात की जा रही है उसका सम्बोधित व्यक्ति से कोई सम्बन्ध है या नहीं । मगही के इसी वैशिष्ट्य की चर्चा इस जालस्थल पर की जायेगी ।<br /><br />चूँकि मगही का क्षेत्र बहुत विशाल है, इसलिए मैं अपने क्षेत्र <span style="color:#ff0000;"><strong>नालन्दा</strong></span> जिला के मुख्यालय <strong><span style="color:#3333ff;">बिहारशरीफ</span></strong> (25°11'55"उ॰, 85°31'8"पू॰) के आसपास और विशेष रूप से अपने गाँव <span style="color:#cc0000;"><strong>डिहरा</strong></span> (25°16'37"उ॰, 85°32'45"पू॰) [बख्तियारपुर-राजगीर रेल्वे लाइन में रहुई रोड स्टेशन से करीब दो कि॰मी॰ पूरब और रहुई (25°16'23"उ॰, 85°33'19"पू॰) से एक कि॰मी॰ पश्चिम] में बोली जानेवाली मगही के वैशिष्ट्य की विस्तृत चर्चा करूँगा और मैं यह चाहूँगा कि <span style="color:#cc33cc;"><strong>अन्य क्षेत्र के मगहीभाषी पाठक अपने-अपने क्षेत्र की मगही के संगत समानान्तर रूप दें ताकि मगही उपभाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में सौकर्य हो ।</strong></span><br /><br /><span style="color:#ff6600;"><strong>यह सब चर्चा हिन्दी माध्यम से की जा रही है ताकि मगही की अन्य उपभाषा-भाषियों को भी किसी मगही उपभाषा को समझने में कोई कठिनाई न हो ।</strong></span> <span style="color:#3333ff;"><strong>इतना ही नहीं, जिन पाठकों की मातृभाषा मगही नहीं है वे भी मगही भाषा के वैशिष्ट्य का रसास्वादन कर सकें</strong></span> और इस चर्चा से प्रेरणा लेकर अपने क्षेत्र की भाषा का विवरणात्मक स्वरूप प्रस्तुत कर सकें ।</div><br /><div align="justify">मगही व्याकरण पर उपलब्ध साहित्य की सूची <a href="http://magahi-sahitya.blogspot.com/2008/01/blog-post_23.html">यहाँ</a> देखें ।</div><div align="justify"><br />इस ब्लॉग निर्माण में मेरे लिए सबसे बड़ा प्रेरणा-स्रोत है - </div><div align="justify"><strong><span style="color:#3333ff;">डॉ॰ के॰ केम्पेगौड</span></strong> (2003): "<span style="color:#ff0000;"><strong>कन्नड उपभाषेगळ अध्ययन</strong></span>" (<strong><span style="color:#cc33cc;">कन्नड उपभाषाओं का अध्ययन</span></strong>), भारती प्रकाशन, सरस्वतीपुरम्, मैसूरु-570009; कुल 480 पृष्ठ (कन्नड में) ।</div><div align="justify"></div><br /><div align="justify">अन्य मुख्य सन्दर्भ-ग्रन्थः </div><div align="justify"><strong><span style="color:#3333ff;">डॉ॰ त्रिभुवन ओझा</span></strong> (1987): "<strong><span style="color:#ff0000;">प्रमुख बिहारी बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन</span></strong>", विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; 15 + 218 पृष्ठ </div>नारायण प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/15182186669695068747noreply@blogger.com0