हिन्दी की तुलना में क्रियारूपों की क्लिष्टता ही मगही भाषा का वैशिष्ट्य है । हिन्दी के एक क्रियारूप के लिए अनेक रूप मगही में पाये जाते हैं । परन्तु साधारणतः किसी एक क्षेत्र की मगही में उन रूपों में एक के स्थान पर दूसरे को नहीं रखा जा सकता । अभी तक मेरी दृष्टि में मगही का एक भी ऐसा व्याकरण ग्रन्थ नहीं प्रकाशित हुआ जिसमें इन रूपों की सूक्ष्मता को दर्शाया गया हो । मगही में क्रियारूपों के वैविध्य का कारण यह है कि इसमें क्रिया केवल कर्ता और कर्म के अनुसार ही नहीं, बल्कि इस पर भी निर्भर करता है कि कोई बात जिसको सम्बोधित करके कही जा रही है, वह व्यक्ति आदरणीय है या नहीं । इतना ही नहीं, जिस व्यक्ति या वस्तु के बारे में उसे सम्बोधित कर बात की जा रही है उसका सम्बोधित व्यक्ति से कोई सम्बन्ध है या नहीं । मगही के इसी वैशिष्ट्य की चर्चा इस जालस्थल पर की जायेगी ।
चूँकि मगही का क्षेत्र बहुत विशाल है, इसलिए मैं अपने क्षेत्र नालन्दा जिला के मुख्यालय बिहारशरीफ (25°11'55"उ॰, 85°31'8"पू॰) के आसपास और विशेष रूप से अपने गाँव डिहरा (25°16'37"उ॰, 85°32'45"पू॰) [बख्तियारपुर-राजगीर रेल्वे लाइन में रहुई रोड स्टेशन से करीब दो कि॰मी॰ पूरब और रहुई (25°16'23"उ॰, 85°33'19"पू॰) से एक कि॰मी॰ पश्चिम] में बोली जानेवाली मगही के वैशिष्ट्य की विस्तृत चर्चा करूँगा और मैं यह चाहूँगा कि अन्य क्षेत्र के मगहीभाषी पाठक अपने-अपने क्षेत्र की मगही के संगत समानान्तर रूप दें ताकि मगही उपभाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में सौकर्य हो ।
यह सब चर्चा हिन्दी माध्यम से की जा रही है ताकि मगही की अन्य उपभाषा-भाषियों को भी किसी मगही उपभाषा को समझने में कोई कठिनाई न हो । इतना ही नहीं, जिन पाठकों की मातृभाषा मगही नहीं है वे भी मगही भाषा के वैशिष्ट्य का रसास्वादन कर सकें और इस चर्चा से प्रेरणा लेकर अपने क्षेत्र की भाषा का विवरणात्मक स्वरूप प्रस्तुत कर सकें ।
चूँकि मगही का क्षेत्र बहुत विशाल है, इसलिए मैं अपने क्षेत्र नालन्दा जिला के मुख्यालय बिहारशरीफ (25°11'55"उ॰, 85°31'8"पू॰) के आसपास और विशेष रूप से अपने गाँव डिहरा (25°16'37"उ॰, 85°32'45"पू॰) [बख्तियारपुर-राजगीर रेल्वे लाइन में रहुई रोड स्टेशन से करीब दो कि॰मी॰ पूरब और रहुई (25°16'23"उ॰, 85°33'19"पू॰) से एक कि॰मी॰ पश्चिम] में बोली जानेवाली मगही के वैशिष्ट्य की विस्तृत चर्चा करूँगा और मैं यह चाहूँगा कि अन्य क्षेत्र के मगहीभाषी पाठक अपने-अपने क्षेत्र की मगही के संगत समानान्तर रूप दें ताकि मगही उपभाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में सौकर्य हो ।
यह सब चर्चा हिन्दी माध्यम से की जा रही है ताकि मगही की अन्य उपभाषा-भाषियों को भी किसी मगही उपभाषा को समझने में कोई कठिनाई न हो । इतना ही नहीं, जिन पाठकों की मातृभाषा मगही नहीं है वे भी मगही भाषा के वैशिष्ट्य का रसास्वादन कर सकें और इस चर्चा से प्रेरणा लेकर अपने क्षेत्र की भाषा का विवरणात्मक स्वरूप प्रस्तुत कर सकें ।
मगही व्याकरण पर उपलब्ध साहित्य की सूची यहाँ देखें ।
इस ब्लॉग निर्माण में मेरे लिए सबसे बड़ा प्रेरणा-स्रोत है -
डॉ॰ के॰ केम्पेगौड (2003): "कन्नड उपभाषेगळ अध्ययन" (कन्नड उपभाषाओं का अध्ययन), भारती प्रकाशन, सरस्वतीपुरम्, मैसूरु-570009; कुल 480 पृष्ठ (कन्नड में) ।
अन्य मुख्य सन्दर्भ-ग्रन्थः
डॉ॰ त्रिभुवन ओझा (1987): "प्रमुख बिहारी बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन", विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; 15 + 218 पृष्ठ
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