Monday, October 26, 2009

2.1 हिन्दी के "था/ थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप

2. 'ह' (to be) धातु के भूतकाल के रूप
'ह' (to be) धातु के भूतकाल के रूप
(हम) हलूँ, हलिअइ, हलिअउ, हलियो

(तूँ - तू अर्थ में) हलँऽ
(तूँ - तुम अर्थ में, अनादरार्थ) हलहीं
(तूँ - तुम अर्थ में, आदरार्थ) हलऽ, हलहो, हलहू
(अपने) हलथिन

(ऊ - अनादरार्थ) हल, हलइ, हलउ, हले, हलो, हलन
(ऊ - आदरार्थ) हला; हलथन, हलथिन, हलथुन; हलखन, हलखिन, हलखुन; -, हलथी, हलथू ; -, हलखी, हलखू

2.1 हिन्दी के "था/ थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप
2.1.1 हिन्दी में "था/ थी" का प्रयोग अन्य पुरुष एकवचन (third person singular number), मध्यम पुरुष एकवचन (second person singular number) अनादरसूचक "तू" एवं उत्तम पुरुष एकवचन (first person singular number) के साथ किया जाता है । मगही में "तू" या "तूँ" अनादर सूचक भी हो सकता है या आदरार्थ भी । अतः क्रिया के रूप से ही स्पष्ट होता है कि इसका प्रयोग आदरार्थ है या अनादरार्थ । मगही में अनादरार्थ प्रयुक्त अन्य पुरुष बहुवचन कर्ता के साथ भी क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है, अर्थात् हिन्दी के "था/ थी" के ही संगत (corresponding) मगही रूप का प्रयोग होता है, "थे/ थीं" का नहीं ।

2.1.2 'हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप' और 'हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया-रूप' के अन्तर्गत जिन-जिन प्रसंगों में मगही के भिन्न-भिन्न जो भी रूप प्रयुक्त होते हैं, उन्हीं प्रसंगों में "था/ थी" के संगत मगही के क्रिया रूप प्रयुक्त होते हैं ।

2.1.3 वर्तमान काल में ककार सहित मगही के क्रिया रूपों में '' को '' में बदल देने से संगत भूतकाल के रूप प्राप्त हो जाते हैं । ककार रहित रूप 'ह' के स्थान पर 'हल' रूप होता है ।

हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –
(1) अन्य पुरुष एकवचन में - ह, हइ/ हकइ, हउ/ हकउ, (हे/) हके, हो/ हको, हन/ हकन
(2) अनादरार्थ प्रयुक्त "तू" या "तूँ" के साथ - हँ/ हकँऽ
मगही में "मैं" शब्द नहीं । इसके लिए "हम" का ही प्रयोग होता है ।

हिन्दी के "(मैं) हूँ" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –
(हम) ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हिअउ/ हकिअउ, हियो/ हकियो

हिन्दी के "था/ थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –
(1) अन्य पुरुष एकवचन में - हल, हलइ, हलउ, हले, हलो, हलन
(2) अनादरार्थ प्रयुक्त "तू" या "तूँ" के साथ - हलँऽ
(3) उत्तम पुरुष एकवचन में - हलूँ, हलिअइ, हलिअउ, हलियो
नोटः
(1) वर्तमान काल के ककार रहित रूप "ही" के संगत भूतकाल रूप "हली" का प्रयोग बिहारशरीफ की मगही में नहीं होता ।
(2) जब मगही के "तू" या "तूँ" का प्रयोग हिन्दी के "तुम" अर्थ में किया जाता है तो "हलँऽ" के स्थान पर "हलहीं" का प्रयोग होता है ।
(3) "ह" धातु के लिए वर्तमान काल की तरह भूतकाल में ककार सहित रूप नहीं होता ।

2.1.4 “हल” का प्रयोग -
"1.1.3 'ह' का प्रयोग" के बारे में जो कुछ बताया जा चुका है, उसी प्रकार "हल" के बारे में भी लागू होता है ।

"हल" का प्रयोग साधारणतः सातत्यबोधक (continuous) या पूर्ण भूतकाल (past perfect tense) में भूतकाल (preterite) रूप के बाद एवं संदिग्ध भूतकाल में सहायक क्रिया (auxiliary verb) के रूप में होता है । यह पुरुष और वचन (person and number) पर निर्भर नहीं करता अर्थात् हिन्दी में "वे कहाँ जा रहे थे" जैसे वाक्यों में "रहे" और "थे" क्रिया के दो-दो बहुवचन रूप प्रयुक्त होते हैं वहाँ मगही में यह बात नहीं । मगही में "थे" के स्थान पर "था" का ही संगत रूप प्रयुक्त होता है, बहुवचन का संकेत भूतकाल रूप से ही प्राप्त हो जाता है । परन्तु यदि भूतकाल रूप अनुनासिकान्त हो तो इसका प्रभाव इसके ठीक बाद आनेवाले "" पर भी पड़ता है जिसके कारण अकसर इसके स्थान पर "हँ" सुनाई देता है और यदि अनुनासिकान्त पूर्णतः श्रव्य स्वर ध्वनि "अँ" आदि हो तो केवल "हँ" आदि ही सुनाई देता है ।

उदाहरण -
ऊ काहाँ जा रहले हल ? - वह कहाँ जा रहा था / रही थी ?
बुतरुआ कीऽ कर रहले हल ? - बच्चा क्या कर रहा था ?
ऊ काहाँ गेले हल ? - वह कहाँ गया था / गई थी ?
ऊ कीऽ कइलके हल ? - उसने क्या किया था ?
सामा ओकरा बड़ी मार मरलके हल - श्याम ने उसे बहुत मार मारा था ।
ई चिठिया कोय पढ़लके हल ? - इस चिट्ठी को किसी ने पढ़ा था ?

ऊ सब (अनादरार्थ) काहाँ जा रहले हल ? - वे सब कहाँ जा रहे थे / रही थीं ?
बुतरुअन (अनादरार्थ) कीऽ कर रहले हल ? - बच्चे क्या कर रहे थे ?
बुतरुअन (आदरार्थ या प्यार सूचक) कीऽ कर रहलथिन हल/ हँल ? - बच्चे क्या कर रहे थे ?

ऊ सब (आदरार्थ) काहाँ जा रहलथिन हल/ हँल ? - वे सब कहाँ जा रहे थे / रही थीं ?

तू / तूँ कीऽ कर रहलहो हल ? - आप क्या कर रहे थे / रही थीं ?

तू / तूँ कीऽ कर रहलँऽ हँल ? - तू क्या कर रहा था / थी ?
तू / तूँ कीऽ कइलँऽ हँल ? - तूने क्या किया था ?
तू / तूँ ई कितब्बा पढ़लँऽ हँल ? - तूने यह किताब पढ़ी थी ?
जदि तूँ अइतऽ हल त हम तोरा जरूर मदत करऽतियो हल - यदि आप आते तो मैं आपकी जरूर मदत करता ।
हमरा पास पइसे नयँ हले त हम कीऽ करतूँ हँल ? कुच्छो खरीद नयँ पइलूँ । - मेरे पास पैसा ही नहीं था तो मैं क्या करता ? कुछ भी खरीद नहीं पाया ।

2.1.5 हलइ का प्रयोग - अन्य पुरुष एकवचन में
(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में , जैसे -
ऊ तो बुतरु हलइ - वह तो बच्चा था ।
किरिसना छातर हलइ - कृष्ण छात्र था ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
ऊ पढ़ऽ हलइ - वह पढ़ता था / पढ़ती थी ।
मंजुआ कीऽ करऽ हलइ ? - मंजु क्या करती थी ?
मंजुआ घर के काम-काज देखऽ हलइ - मंजु घर का काम-काज देखती थी ।

ऊ दिन भर कीऽ करते रहऽ हलइ ? - वह दिन भर क्या करते रहता था / रहती थी ?

2.1.6 हलउ का प्रयोग - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है । जैसे –
तोरा पढ़े-लिक्खे आवऽ हलउ ? - तुझे पढ़ना-लिखना आता था ?
तोर बेटवा कीऽ करऽ हलउ ? - तुम्हारा बेटा क्या करता था ?

इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता था' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में क्रिया ‘हलउ’ श्रोता के अनुसार है जो हैसियत या ओहदा में वक्ता से बहुत नीचे है !

2.1.7 हले का प्रयोग - इसका प्रयोग "हम" के साथ किसी अन्यपुरुष के व्यक्ति, वस्तु आदि के लिए किया जाता है । जैसे -
हमरा ओरा / ओकरा से कोय मतलब नयँ हले - हमें उससे कोई मतलब नहीं था ।
हम्मर ऊ केऽ हले ? - मेरा वह कौन (लगता) था ? (अर्थात् मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं था ।)

2.1.8 हलो का प्रयोग - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है । जैसे -
हमर बेटवा कलकत्ता में चपरासी के काम करऽ हलो - मेरा बेटा कलकत्ता में चपरासी का काम करता था ।

इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता था' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में यह बात नहीं है । मगही में क्रिया 'हलो' अव्यक्त श्रोता के अनुसार है जो वक्ता की दृष्टि में आदरणीय है !

2.1.9 हलन का प्रयोग - यह भी आदरार्थ प्रयोग है । परन्तु, ऐसा प्रयोग किसी चीज या व्यक्ति के बारे में तब किया जाता है जब यह किसी ऐसे आदरणीय व्यक्ति से सम्बन्धित हो जिसे वक्ता सीधे सम्बोधित न कर रहा हो अर्थात् आदरणीय व्यक्ति अन्य पुरुष (third person) के रूप में प्रयुक्त हो । जैसे -
भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एगो धनी किसान तो हइये हलथिन, भवानीपुर में लोहा सिमेंट के दोकानो हलन - भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एक धनी किसान तो थे ही, भवानीपुर में लोहा सिमेंट की दुकान भी थी ।
ऊ दोकान से निमन अमदनी हो जा हलन - उस दुकान से अच्छी आमदनी हो जाती थी ।

उपर्युक्त उदाहरणों में हिन्दी में 'थी' क्रिया 'दुकान' और 'आमदनी' के अनुसार है । परन्तु मगही में आदरार्थ 'हलन' क्रिया का प्रयोग अत्यन्त आदरणीय 'गोवर्धन शर्मा' जी के अनुसार है !

2.1.10 हलँऽ के प्रयोग- इसका प्रयोग हिन्दी में प्रयुक्त "तू" के समानान्तर मगही में प्रयुक्त अनादरार्थ "तू" या "तूँ" के साथ
(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) रूप में किया जाता है । जैसे -
तू / तूँ हलँऽ - तू था / थी ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
तू / तूँ कीऽ करऽ हलँऽ ? - तू क्या करता था / थी ?
तू / तूँ इस्कूलवा पढ़े जा हलँऽ ? - तू स्कूल पढ़ने जाता था / थी ?
2.1.11 हलूँ के प्रयोग-
(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में
हलूँ वसुदेव, आउ होलूँ वसुआ; कन्हा पे चढ़ के सींभ तोड़लक ससुआ ।
(मैं) था वसुदेव, और हो गया वसुआ; कन्धे पर चढ़कर सेम तोड़ा सास ने ।
(घरजमाई होने का नतीजा वसुदेव नामक व्यक्ति सुना रहा है ।)

(2) सहायक क्रिया के रूप में,
हम अइसन गलत काम भूलियो के नयँ करऽ हलूँ - मैं ऐसा गलत काम भूल के भी नहीं करता था ।

2.1.12 हलिअइ के प्रयोग-
(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -
हम तो तब बुतरू हलिअइ, तइयो हमरा सब समझ में आवऽ हलइ कि ई घर में की की हो रहले ह - मैं तो तब बच्चा था, फिर भी मुझे सब समझ में आता था कि इस घर में क्या-क्या हो रहा है ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे –
हम जब कभी उनका हीं जा हलिअइ, त ज्योतिष के बारे खूब देर तक चर्चा करऽ हलिअइ - मैं जब कभी उनके यहाँ जाता था, तो ज्योतिष के बारे में खूब देर तक चर्चा करता था ।

हलूँ और हलिअइ में अन्तर - जैसा कि उपर्युक्त वाक्यों से स्पष्ट होता है, हलूँ का प्रयोग स्वगत भाषण में या अपने पक्ष में रक्षात्मक (defensive) पहलू प्रस्तुत करने के लिए होता है, जबकि हलिअइ का प्रयोग सामान्य कथन के रूप में ।

एक दूसरे वाक्य पर गौर करें ।

हम एरा / एकरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ हलिअइ तो ओरा / ओकरा बतइतिये हल कीऽ ? - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं था तो उसे बताता क्या ?
इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता किसी श्रोता से स्पष्ट रूप से बात कर ऐसी सूचना दे रहा है । वक्ता के इस कथन में गुस्सा झलकता है कि वह व्यर्थ ही कोई बात पूछ रहा था जो यह जानता ही नहीं था ।

हम एरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ हलूँ त ओरा बतइतूँ हँल कीऽ ? - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं था तो उसे बताता क्या ?
इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता के पास कोई श्रोता नहीं था, बल्कि वह ऐसा मन में सोच रहा था । या श्रोता तो था जिसे वह ऐसी सूचना दे रहा था, परन्तु उसके कथन में लाचारी झलकती है कि बात नहीं बता पाने के कारण व्यर्थ में उससे कष्ट झेलना पड़ रहा था ।

2.1.13 हलिअउ के प्रयोग -
इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -
हम तो एज्जे हलिअउ, तोरा घबराय के कीऽ बात हलउ ? - मैं तो यहीं था, तुझे घबराने की क्या बात थी ?

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
हम जब कभी बिहारशरीफ जा हलिअउ त तोर बेटवा से भेंट हो जा हलउ - मैं जब कभी बिहारशरीफ जाता था तो तेरे बेटे से भेंट हो जाती थी ।

2.1.14 हलियो के प्रयोग-
इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -
हम तो एज्जे हलियो, तोरा घबराय के कीऽ बात हलो ? - मैं तो यहीं था, आपको घबराने की क्या बात थी ?

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
हम पचमा में पढ़ऽ हलियो तभीये के ई बात हको - मैं पाँचवीं (कक्षा) में पढ़ता था तभी की यह बात है ।

Saturday, October 24, 2009

1.4 हिन्दी के "हो" के लिए मगही के क्रिया रूप

हिन्दी में वर्तमान काल में "हो" का प्रयोग मध्यम पुरुष के “तुम” (एकवचन) या “तुमलोग” (बहुवचन) के साथ किया जाता है । मगही में "हो" के लिए कई रूप होते हैं जो इस प्रकार हैं –

(तुम/ तुमलोग) हो - (1) अनादरार्थ - (तूँ / तोहन्हीं/ तोहन्हीं सब) हीं/ हकहीं
(2) आदरार्थ - (तूँ / तोहन्हीं/ तोहन्हीं सब) ह/ हकऽ , हू / हकहू , हो / हकहो
(3) आदरार्थ या अनादरार्थ सहायक क्रिया के रूप में - ह/ हँ

यहाँ आदरार्थ का मतलब है - मध्यम स्तर के आदर के लिए प्रयोग, जो साधारणतः परिवार/ रिश्तेदार के उम्र में बड़े पुरुषों (जैसे - पिता, चाचा, दादा, आदि) या उनके समकक्ष के साथ किया जाता है । परिवार/ रिश्तेदार को छोड़ अन्य पुरुष या स्त्री (चाहे उम्र में अधिक हो या कम) के लिए भी साधारणतः आदरार्थ प्रयोग होता है ।

साधारणतः परिवार/ रिश्तेदार की उम्र में बड़ी स्त्रियों (जैसे - माँ, चाची, मौसी, दादी, नानी आदि) के साथ अनादरार्थ क्रिया का ही प्रयोग होता है ।

किसी अनजान बुजुर्ग या हैसियत और इज्जत में बड़े लोगों को उच्च दर्जे का आदर दिया जाता है और "तूँ" के स्थान पर "अपने" (= आप) शब्द का प्रयोग होता है । इसके लिए देखें - हिन्दी में "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप ।

1.4.1 जैसा कि अनुच्छेद 1.1.2 में लिखा जा चुका है, सामान्य कथन में (as a general statement) ककार रहित रूप का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ ककार सहित रूप का प्रयोग किया जाता है ।

1.4.2 हीं/ हकहीं के प्रयोग- अनादरार्थ मध्यम पुरुष में

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में , जैसे -
तूँ तो अभी बुतरू हीं / हकहीं, तोरा अभी ई बात नयँ समझ में अयतउ - तुम तो अभी बच्चे हो, तुम्हें अभी यह बात समझ में नहीं आयेगी ।
(तूँ) काहाँ हीं / हकहीं, जल्दी आहीं न - (तुम) कहाँ हो, जल्दी आओ न ।
तूँ हीं / हकहीं न हियाँ, हम्मर कीऽ जरूरत हइ / हकइ ? - तुम हो न यहाँ, मेरी क्या जरूरत है ?

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
तूँ / तोहन्हीं पढ़ऽ हीं/ हकहीं – तुम / तुमलोग पढ़ते/ पढ़ती हो ।
तूँ कीऽ करऽ हीं/ हकहीं ? - तुम क्या करते / करती हो ?
तूँ तो घर के सब्हे काम-काज देखऽ हीं/ हकहीं - तुम तो घर के सब काम-काज देखते / देखती हो ।
तूँ दिन भर कीऽ करते रहऽ हीं/ हकहीं ? - तुम दिन भर क्या करते रहते/ रहती हो ?

1.4.3 ह/ हकऽ , हू / हकहू , हो / हकहो के प्रयोग- आदरार्थ मध्यम पुरुष में
ह/ हकऽ , हो / हकहो, हू / हकहू में आदर का भाव बढ़ते क्रम में है । साधारणतः ह/ हकऽ का प्रयोग कम उम्र के लोगों के लिए, हो / हकहो रिश्तेदार के बाहर के समान उम्र वालों के लिए एवं रिश्तेदार के उम्र में अधिक व्यक्ति के लिए और हू / हकहू का प्रयोग रिश्तेदार के बाहर के बुजुर्गों के लिए किया जाता है । बच्चों के साथ प्यार प्रदर्शित करने के लिए किसी भी रूप का प्रयोग किया जा सकता है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -
इस रूप में साधारणतः "हो" का प्रयोग नहीं होता (अन्य प्रयोग के लिए देखें - ‘हिन्दी में "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप’ के अन्तर्गत "हो/ हको" के प्रयोग)।

गाँव में तूहीं अदमी ह / हकऽ, जेकरा पर हम आँख मून के बिसवास कर सकऽ ही आउ बिना कोय डर-भय के बात कर सकऽ ही - गाँव में आप ही (एक भले) व्यक्ति/ इंसान हैं, जिस पर मैं आँख मूँद कर विश्वास कर सकता हूँ और बिना किसी डर-भय के बात कर सकता हूँ । (यहाँ, गाँव में कई गुटों में बँटे लोगों में से एक गुट का हैसियत में बड़ा व्यक्ति एकान्त में लगभग हमउम्र अपेक्षाकृत हैसियत में छोटे एक ऐसे व्यक्ति से बात कर रहा है जो दवाब और धमकी के बाबजूद किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ ।)

तूँ जब तक हियाँ हकहो तब तक हमन्हीं लगि कोय चिन्ता के बात नयँ हइ / हकइ - आप जब तक यहाँ हैं तब तक हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं है ।

तूँ जब तक हियाँ हू / हकहू तब तक हमन्हीं लगि कोय चिन्ता के बात नयँ हइ / हकइ - आप जब तक यहाँ हैं तब तक हमारे लिए कोई चिन्ता की बात नहीं है ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
कन्ने जा ह/ हकऽ , आवऽ , बइठऽ न; तोरा से कुछ बात करे के हइ/ हकइ - कहाँ जा रहे हैं, आइये, बैठिये न; आपसे कुछ बात करनी है । (इस प्रसंग में वक्ता अपने से कम उम्र के लड़के को बोल रहा है ।)

काहाँ जा हू / हकहू ? - (आप) कहाँ जा रहे / रही हैं ?

बाउ (जी), काहाँ जा हो/ हकहो ? - पिता जी, (आप) कहाँ जा रहे हैं ?
बाबा, काहाँ जा हो/ हकहो ? - दादा जी, (आप) कहाँ जा रहे हैं ?

नोट: मगही में "बाबाजी" का प्रयोग (अकसर कम पढ़े-लिखे या बिलकुल अनपढ़) ब्राह्मण के लिए किया जाता है । अतः साधारणतः बच्चे अपने दादा को कभी "बाबाजी" कहकर सम्बोधित नहीं करते । परन्तु, अपने पिता को सम्बोधित करने के लिए "बाउ" के साथ-साथ अधिक आदर के लिए "जी" भी साथ में जोड़ देते हैं ।

1.4.4 ह/ हँ के प्रयोग- आदरार्थ या अनादरार्थ मध्यम पुरुष में

(तूँ) कीऽ कर रहलहीं ह/ हँ ? - तुम क्या कर रहे / रही हो ? (देखें – ‘हिन्दी में "है" के लिए मगही के क्रिया रूप’ के अन्तर्गत "" के प्रयोग ।)
(तूँ) काहाँ से आ रहलहीं ह/ हँ ? - तुम कहाँ से आ रहे / रही हो ?