Monday, September 28, 2009

1.3 हिन्दी के "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप

1.3 हिन्दी के "हैं" के लिए मगही के क्रिया रूप
हिन्दी में वर्तमान काल में "हैं" का प्रयोग उत्तम पुरुष बहुवचन, अन्य पुरुष बहुवचन और मध्यम पुरुष के "आप" (वस्तुतः इसके लिए क्रिया का प्रयोग अन्य पुरुष के रूप में किया जाता है) के साथ किया जाता है । मगही में "हैं" के लिए कई रूप होते हैं जो इस प्रकार हैं –

(हम) हैं – (हम, हमन्हीं/ हम सब) हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ

(आप) हैं – (अपने) हथिन

[वे, वे लोग (आदरार्थी)] हैं – (ऊ, ऊ सब/ ऊ लोग/ ओकन्हीं) हका; हथन, हथिन, हथुन; हखन, हखिन, हखुन; -, हथी, हथू ; -, हखी, हखू

कभी-कभी हथन, हथिन, हथुन के स्थान पर हखन, हखिन, हखुन का प्रयोग सुनाई देता है । कभी-कभी हथिन, हथुन के स्थान पर हथी, हथू या हखी, हखू भी सुनाई देता है ।

"वे" अगर अनादरार्थ प्रयुक्त हो तो हिन्दी में बहुवचन होते हुए भी बिहारशरीफ की मगही में इसके लिए क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है । देखें पूर्व लेख - हिन्दी के "है" के लिए मगही क्रिया रूप ।

1.3.1 जैसा कि अनुच्छेद 1.1.2 में लिखा जा चुका है, सामान्य कथन में (as a general statement) ककार रहित रूप का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ ककार सहित रूप का प्रयोग किया जाता है । यही बात हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ में भी लागू होती है ।

1.3.2 हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ के प्रयोगः इसके लिए देखें - 1.2 हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया रूप ।

1.3.3 मध्यम पुरुष में (आप) "हैं" अर्थ में हमेशा (अपने) "हथिन" का प्रयोग होता है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में,

अपने केऽ हथिन ? - आप कौन हैं ?

(2) सहायक क्रिया के रूप में,

अपने काहाँ रहऽ हथिन ? - आप कहाँ रहते हैं ।
अपने कीऽ करऽ हथिन ? - आप क्या करते हैं ?

1.3.4 अन्य पुरुष में एक या अनेक व्यक्ति को मध्यम दर्जे का आदर-भाव व्यक्त करना हो तो "हका" का प्रयोग होता है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में,

ऊ कीऽ शेर हका जे हमरा खा जइता ? - वे क्या शेर हैं जो हमें खा जायेंगे ?
ई समूचे शहर में हीरा के सबसे बड़गर व्यापारी हका - ये समूचे शहर में हीरा के सबसे बड़े व्यापारी हैं ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में,

ऊ कीऽ करऽ हका ? - वे क्या करते हैं ।
ऊ जेतना बतइलका ओरा से कहीं अधिक उनका ई कतल के बारे मालूम हइ । जे हमरा चाही ऊ छिपाके रखले हका - उन्होंने जितना बताया उससे कहीं अधिक उन्हें इस कत्ल के बारे मालूम है । जो हमें चाहिए वो छिपाके रखे हुए हैं ।

1.3.5 हथन, हथिन, हथुन के प्रयोग: इसका प्रयोग उच्च दर्जे का आदर-भाव व्यक्त करने के लिए किया जाता है । पूर्व रूपों के समान ही इसका भी मुख्य या सहायक क्रिया के रूप में प्रयोग होता है ।

हथन, हथिन, हथुन का प्रयोग ठीक से समझने के लिए प्रसंग समझना आवश्यक है ।

(१) प्रसंगः एक आदमी एक घर जाकर दरवाजे पर दस्तक देता है । एक बच्चा दरवाजा खोलता है । वह आदमी बच्चे से बातचीत करता है ।
- बाऊ घरे हथुन बुआ ? - (तेरे) बाबूजी घर पर ही हैं, बबुआ ?
- नयँ, नयँ हथुन - नहीं, नहीं हैं ।
- कखने अयथुन ? - कब आयेंगे ?
- साँझ तलक अयथुन । - साँझ तक आयेंगे ।

ध्यातव्यः इस प्रसंग में प्रश्न और उत्तर दोनों में केवल "-थुन" का प्रयोग होता है।

(२) प्रसंगः एक आदमी एक प्रोफेसर साहब के घर के दरवाजे पर जाकर दस्तक देता है । एक महिला दरवाजा खोलती है । वह आदमी महिला से बातचीत करता है ।
- प्रो॰ साहब घरे हथिन ? - प्रो॰ साहब घर पर ही हैं ?
- नयँ, नयँ हथुन - नहीं, नहीं हैं ।
- कखने अयथिन ? - कब आयेंगे ?
- बिहान अयथुन । - कल आयेंगे ।

ध्यातव्यः इस प्रसंग में प्रश्न में केवल "-थिन" और उत्तर में केवल "-थुन" का प्रयोग होता है।

अब हम डॉ॰ राम प्रसाद सिंह रचित मगही उपन्यास "नरक सरग धरती" से कुछ उद्धरण बिहारशरीफ की मगही में प्रस्तुत करते हैं ।

(3) प्रसंगः खदेरन नामक अधेड़ उम्र का आदमी सुक्खू के मिल में काम करता है । वहाँ दुर्घटना घटने के कारण घायल होकर बेहोश हो जाता है । खदेरन को टाँगकर लोग डॉक्टर के पास लाते हैं । वह खदेरन का इलाज करता है । बेला नामक नर्स भी उसकी सेवा में खड़ी है । खदेरन की नींद खुलती है तो वह चिल्ला उठता है (पृ॰ १२७) -
- अरे सुक्खू बेटा, अब नयँ बचवउ । चाची के ठीक से रखिहँ ।
- चचा, तू अभी न मरबऽ । तनी गोड़ में चोट लग गेलो ह, बिहान तलक ठीक हो जइतो ।
- न बेटा, हम्मर कपार उड़ल जा रहलो ('रहलउ' के संक्षिप्त रूप) ह । आउ ई बगल में उज्जर लुग्गा पेन्हले के खड़ा हकइ ? एहे हम्मर गोड़ तोड़ देलक ह । एकरा हिआँ से जल्दी भगाव ।
- ई अस्पताल के नर्स हथिन चचा । ई तो तोर सेवा में लगल हथुन

ध्यातव्यः इस प्रसंग में परिचय देते समय केवल "-थिन" का प्रयोग होता है । परिचय हो चुकने के बाद नर्स और रोगी का सीधा सम्बन्ध निर्दिष्ट होने के कारण केवल "-थुन" का प्रयोग होता है।

(4) प्रसंगः गाँव में दलित लोगों का नेता रग्घू दलितों को खेतिहर महतो लोगों के विरोध में भड़काकर अल्हैत दल का निर्माण करता है और नक्सलाइट लोगों को आमन्त्रित कर शाम को आल्हा के जरिये नक्सलाइट का ट्रेनिंग दिलवाता है । उनका काम शाम को मनोरंजन करना और रात को महतो के खेत की फसल चुराना होता है । जमुना नामक युवक भी अल्हैत दल का एक सदस्य है, हालाँकि उसे यह चोरी-तोरी का काम पसन्द नहीं है । इधर ईसरी महतो के नेतृत्व में एक कमासुत दल का भी निर्माण होता है जिसमें गरीब तबके के लोग भी होते हैं । इस दल का काम परिश्रम से कमाकर खाना होता है और गाँव के जरूरतमंद लोगों की आवश्यक मदद करनी होती है ।

गाँव के जमींदार वर्मा साहब की बेटी सुषमा की शादी महतो के लड़के नगीना से हो जाती है । नगीना कॉलेज तक पढ़ा-लिखा नवयुवक है । परन्तु शहर की नौकरी छोड़-छाड़कर वह खुद खेती करना चालू करता है और सुषमा भी उसके साथ इस कार्य में हाथ बँटाती है ।

नगीना के बारे में जमुना के सामने रग्घू टिप्पणी करता है (पृ॰ १५६-१५७) -
"पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो ये किसमत के खेल ।" कहके रग्घू जमुना दने ताकलक आउ ई भरल बरसात में भी जुत्ता मचमचइते पक्का सड़क धैले घरे जाय लगल । जमुना बोलल - "केतनो हथिन तो मलकाने घराना के न हथिन हो । अइसे काहे बोलऽ हीं ?"
........
"अरे इनसाल ई अपने खेती नयँ करता हल त हमन्हिंयें न उनकर सब खेत जोत लेतिये हल । फोकट में बीस बिगहा खेत हमन्हीं के मिल जात हल ।"
"आउ महतो लोग टुकुर-टुकुर देखते रह जइथुन हल ? उनका पास अपने कमासुत दल हइ जे बीस कीऽ, सो बिगहा खेती कर सकऽ हइ ।"
"अरे, हमर नेकलाइट के फौज जुटते हल त सब कमासुत दल भुला जइता हल ।"
"तहिना तो नेकलाइट के नेता कहलथुन हल कि महतो तोहनी के भाई-बन्धु हो सकऽ हथुन, विरोधी थोड़े हथुन ? दस-बीस बिगहा जोते वला कहऊँ जमीदार होवऽ हइ ?”
“हमनी के गाँव में तो ओहे न जमीदार हथन । केकरा से लड़े जाम ?”
“काहे ? लड़े ल दोसर जमीदार न हथिन ? उकी बगले के गाँव में दू-दू चर-चर सौ बिगहा जोते वलन हथन, जिनकर आधा से जादे खेत परीत रह जा हइ । जो, उनकर खेत जोत-कोड़ आउ दखल कराव तब न जनवउ ?”

Wednesday, September 23, 2009

1.2 हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया रूप

1.2 हिन्दी के "हूँ" के लिए मगही के क्रिया रूप

मगही में "मैं" शब्द नहीं । इसके लिए "हम" का ही प्रयोग होता है ।

मगही में “(मैं) हूँ " के लिए कई रूप होते हैं जो इस प्रकार हैं –

(हम) ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ

1.2.1 जैसा कि अनुच्छेद 1.1.2 में लिखा जा चुका है, सामान्य कथन में (as a general statement) ककार रहित रूप का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ ककार सहित रूप का प्रयोग किया जाता है । यही बात ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ में भी लागू होती है ।

1.2.2 ही / हूँ / हकूँ के प्रयोगः

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में

इस रूप में साधारणतः "हकूँ" का प्रयोग होता है । "हूँ" का प्रयोग सुनाई नहीं देता, जबकि "ही" का प्रयोग कम होता है ।

तू चोर हँ । - तू चोर है ।
नयँ, हम चोर नयँ हकूँ । - नहीं, मैं चोर नहीं हूँ ।
नयँ, हम चोर नयँ ही । - नहीं, मैं चोर नहीं हूँ ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में,

ही / हूँ / हकूँ में से सभी का प्रयोग होता है ।

हम चोरी-तोरी के काम नयँ करऽ ही । - मैं चोरी-वोरी का काम नहीं करता (हूँ) ।
हम चोरी-तोरी के काम नयँ करऽ हूँ । - मैं चोरी-वोरी का काम नहीं करता (हूँ) ।
हम चोरी-तोरी के काम नयँ करऽ हकूँ । - मैं चोरी-वोरी का काम नहीं करता (हूँ) ।

तीनों वाक्यों में अर्थ में थोड़ा अन्तर है और वह है - ही / हूँ / हकूँ में क्रिया पर जोर (stress) बढ़ते क्रम में है ।

1.2.3 हिअइ/ हकिअइ के प्रयोगः

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -

हम तो अभी बुतरू हिअइ / हकिअइ - मैं तो अभी बच्चा हूँ ।
हम कौलेज के छातर हिअइ / हकिअइ - मैं कॉलेज का छात्र हूँ ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे –

हम पढ़ऽ हिअइ/ हकिअइ - मैं पढ़ता/ पढ़ती हूँ ।
हम कौलेज जा हिअइ/ हकिअइ - मैं कॉलेज जाता/ जाती हूँ ।

हम दिन भर काम करते रहऽ हिअइ/ हकिअइ - मैं दिन भर काम करते रहता/ रहती हूँ ।

नोटः "हम जा ही / हूँ / हकूँ", "हम करऽ ही / हूँ / हकूँ" और "हम जा हिअइ / हकिअइ", "हम करऽ हिअइ / हकिअइ" - इन दो प्रकार के वाक्यों का हिन्दी अनुवाद समान है - "मैं जाता / जाती हूँ", "मैं करता / करती हूँ" । परन्तु मगही में इन दोनों वाक्यों के अर्थ में अन्तर है । मगही में अर्थों के सूक्ष्म अन्तर को समझने के लिए निम्नलिखित वाक्य पर गौर करें ।

हम जा ही / हूँ / हकूँ (, तूहूँ चलऽ हँ ?) - मैं जाता हूँ (, तू भी चलेगा ?)

हम जा हिअइ / हकिअइ (, अनुमति देथिन) - मैं जाता हूँ (, अनुमति दीजिए) ।

हम ई सब काम नयँ करऽ ही / हूँ / हकूँ - मैं यह सब काम नहीं करता ।
इस वाक्य से यह अर्थ निकलता है कि यह सब काम खराब या घृणित है ।

हम ई सब काम नयँ करऽ हिअइ / हकिअइ - मैं यह सब काम नहीं करता ।
इस वाक्य से यह अर्थ निकलता है कि चूँकि यह सब काम मैं नहीं करता, अतः यह सब काम आप किसी और से करवा ले सकते हैं । इस प्रसंग में काम घृणित या खराब है, ऐसा अर्थ बिलकुल नहीं निकलता । या यह वाक्य साधारण तौर पर एक नकारात्मक वाक्य (negative sentence) है ।

एक दूसरे वाक्य पर गौर करें ।

हम एरा / एकरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ हिअइ / हकिअइ तो ओरा / ओकरा बतइअइ कीऽ ? - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं तो उसे बताऊँ क्या ?
इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता किसी श्रोता से स्पष्ट रूप से बात कर ऐसी सूचना दे रहा है । वक्ता के इस कथन में गुस्सा झलकता है कि वह व्यर्थ ही कोई बात पूछ रहा है जो यह जानता ही नहीं ।

हम एरा बारे कुछ जानबे नयँ करऽ ही / हूँ / हकूँ तो ओरा बतामूँ कीऽ ? - मैं इसके बारे में कुछ जानता ही नहीं तो उसे बताऊँ क्या ?
इसका अर्थ यह निकलता है कि वक्ता के पास कोई श्रोता नहीं है, बल्कि वह ऐसा मन में सोच रहा है । या श्रोता तो है जिसे वह ऐसी सूचना दे रहा है, परन्तु उसके कथन में लाचारी झलकती है कि बात नहीं बता पाने के कारण व्यर्थ में उससे कष्ट झेलना पड़ रहा है ।

हिन्दी वाक्य में ऐसे सूक्ष्म अन्तर जान पाना बिना पूरा प्रसंग जाने सम्भव नहीं है ।

1.2.4 हियो/ हकियो के प्रयोगः इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -

हम एज्जे हियो/ हकियो, तोरा घबराय के कोय बात नयँ हको - मैं यहीं हूँ, आपको घबराने की कोई बात नहीं है ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -

हम अब चलऽ हियो/ हकियो, बिहान फेर अइबो - अब मैं चलता हूँ, कल फिर आऊँगा ।

1.2.5 हिअउ/ हकिअउ के प्रयोगः इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है ।

(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में, जैसे -

हम एज्जे हिअउ/ हकिअउ, तोरा घबराय के कोय बात नयँ हकउ - मैं यहीं हूँ, तुझे घबराने की कोई बात नहीं है ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -

हम अब चलऽ हिअउ/ हकिअउ, बिहान फेर अइबउ - अब मैं चलता हूँ, कल फिर आऊँगा ।

Sunday, September 6, 2009

1.1 हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप

पाठकों, विशेषकर मगही-भाषियों, से निवेदन है कि मगही व्याकरण सम्बन्धी मेरे सन्देशों पर कोई टिप्पणी करने के पहले वे कृपया इस ब्लॉग की भूमिका एक बार अवश्य देख लें ।

मगही में क्रिया का रूप संज्ञा के लिंग (gender) पर निर्भर नहीं करता । उदाहरण के लिए -
लड़का जा हइ - लड़का जाता है ।
लड़की जा हइ - लड़की जाती है ।

1. 'ह' (to be) धातु के वर्तमानकाल के रूप
डॉ॰ ग्रियर्सन ने 'ह' धातु के स्थान पर "अह्" धातु माना है ("Seven Grammars ...", Part III, p.31) । शायद उन्होंने संस्कृत के "अस्" धातु के सकार को हकार में परिवर्तित करके मगही का धातु स्वीकार कर लिया है । डॉ॰ सम्पत्ति अर्याणी ने डॉ॰ ग्रियर्सन का अनुसरण किया है ("मगही व्याकरण प्रबोध", पृ॰107) । लेकिन डॉ॰ ग्रियर्सन का यह भी कहना है - "Note that throughout the initial अ of the root has disappeared" (वही, पृ॰31) । इस हालत में " अह् " के बदले "ह" धातु मानना ही उचित है ।

'ह' (to be) धातु के वर्तमानकाल के रूप

(हम) ही/ हूँ/ हकूँ, हिअइ/ हकिअइ, हियो/ हकियो, हिअउ/ हकिअउ

(तूँ - तू अर्थ में) हँ/ हकँऽ
(तूँ - तुम अर्थ में, अनादरार्थ) हीं/ हकहीं
(तूँ - तुम अर्थ में, आदरार्थ) ह/ हकऽ, हू / हकहू , हो / हकहो
(अपने) हथिन

(ऊ - अनादरार्थ) ह, हइ/ हकइ, हउ/ हकउ, (हे/) हके, हो/ हको, हन/ हकन
(ऊ - आदरार्थ) हका; हथन, हथिन, हथुन; हखन, हखिन, हखुन; -, हथी, हथू ; -, हखी, हखू

1.1 हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप

1.1.1 हिन्दी में "है" का प्रयोग अन्य पुरुष एकवचन (third person singular number) एवं मध्यम पुरुष एकवचन (second person singular number) अनादरसूचक "तू" के साथ किया जाता है । मगही में "तू" या "तूँ" अनादर सूचक भी हो सकता है या आदरार्थ भी । अतः क्रिया के रूप से ही स्पष्ट होता है कि इसका प्रयोग आदरार्थ है या अनादरार्थ । मगही में अनादरार्थ प्रयुक्त अन्य पुरुष बहुवचन कर्ता के साथ भी क्रिया का रूप एकवचन में ही होता है, अर्थात् हिन्दी के "है" के ही संगत (corresponding) मगही रूप का प्रयोग होता है, "हैं" का नहीं ।

हिन्दी के "है" के लिए मगही के क्रिया-रूप हैं –
(1) अन्य पुरुष एकवचन में - ह, हइ/ हकइ, हउ/ हकउ, (हे/) हके, हो/ हको, हन/ हकन
(2) अनादरार्थ प्रयुक्त "तू" या "तूँ" के साथ - हँ/ हकँऽ

नोटः जब मगही के "तू" या "तूँ" का प्रयोग हिन्दी के "तुम" अर्थ में किया जाता है तो "हँ/ हकँऽ" के स्थान पर "हीं/ हकहीं" का प्रयोग होता है ।

1.1.2 सामान्य कथन में (as a general statement) ककार रहित रूप का प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ क्रिया पर थोड़ा जोर (stress) देना अपेक्षित हो वहाँ ककार सहित रूप का प्रयोग किया जाता है ।

1.1.3 'ह' का प्रयोग - इसका प्रयोग साधारणतः सातत्यबोधक (continuous) या पूर्ण (perfect) वर्तमानकाल (present tense) में भूतकाल (preterite) रूप के बाद सहायक क्रिया (auxiliary verb) के रूप में होता है । यह पुरुष और वचन (person and number) पर निर्भर नहीं करता अर्थात् हिन्दी में "वे कहाँ जा रहे हैं" जैसे वाक्यों में "रहे" और "हैं" क्रिया के दो-दो बहुवचन रूप प्रयुक्त होते हैं वहाँ मगही में यह बात नहीं । मगही में "हैं" के स्थान पर "है" का ही संगत रूप प्रयुक्त होता है, बहुवचन का संकेत भूतकाल रूप से ही प्राप्त हो जाता है । परन्तु यदि भूतकाल रूप अनुनासिकान्त हो तो इसका प्रभाव इसके ठीक बाद आनेवाले "" पर भी पड़ता है जिसके कारण अकसर इसके स्थान पर "हँ" सुनाई देता है और यदि अनुनासिकान्त ध्वनि "अँ" हो तो केवल "हँ" ही सुनाई देता है ।

उदाहरण -
ऊ काहाँ जा रहले ह ? - वह कहाँ जा रहा है ?
बुतरुआ कीऽ कर रहले ह ? - बच्चा क्या कर रहा है ?
ऊ काहाँ गेले ह ? - वह कहाँ गया/ गई है ?
ऊ कीऽ कइलके ह ? - उसने क्या किया है ?
सामा ओकरा बड़ी मार मरलके ह - श्याम ने उसे बहुत मार मारा है ।
ई चिठिया कोय पढ़लके ह ? - इस चिट्ठी को किसी ने पढ़ा है ?

ऊ सब (अनादरार्थ) काहाँ जा रहले ह ? - वे सब कहाँ जा रहे हैं ?
बुतरुअन (अनादरार्थ) कीऽ कर रहले ह ? - बच्चे क्या कर रहे हैं ?

ऊ सब (आदरार्थ) काहाँ जा रहलथिन ह/ हँ ? - वे सब कहाँ जा रहे हैं ?
बुतरुअन (आदरार्थ या प्यार सूचक) कीऽ कर रहलथिन ह/ हँ ? - बच्चे क्या कर रहे हैं ?

तू / तूँ कीऽ कर रहलहो ह ? - आप क्या कर रहे हैं ?

तू / तूँ कीऽ कर रहलँऽ हँ ? - तू क्या कर रहा है ?
तू / तूँ कीऽ कइलँऽ हँ ? - तूने क्या किया है ?
तू / तूँ ई कितब्बा पढ़लँऽ हँ ? - तूने यह किताब पढ़ी है ?

परन्तु,
अरे ! ऊ कीऽ कइले हइ/ हकइ ? जल्दी से बोला न ओकरा । - अरे ! वह क्या कर रहा है ? जल्दी से बुलाओ न उसे ।

इस उदाहरण में "कइले" का सातत्य वर्तमान (present continuous) के अर्थ में कुछ अधीरता, जल्दीबाजी, उत्सुकता या सावधानी अर्थ भी समाहित होता है । इस प्रकार के उदाहरण में 'कइले' शब्द वस्तुतः भूत कृदन्त (past participle) 'कइल' से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है - "किया हुआ" । यह शब्द सभी पुरुष और वचन में समान अर्थात् अविकृत रूप में रहता है और इसके बाद होना क्रिया का रूप ही पुरुष और वचन के अनुसार बदलता है (हइ, हउ, हको इत्यादि) । "कइले" का "किया हुआ" अर्थ में भी प्रयोग होता है, जैसे -
ऊ कीऽ कइले हइ/ हकइ ? - उसने क्या किया हुआ है ? (ऐसा सवाल योग्यता के बारे में हो सकता है, जैसे कि वह मैट्रिक किया हुआ है, या बी॰ए॰, एम॰ए॰, बी॰टेक्॰, ...?)

1.1.4 हइ/ हकइ के प्रयोग- अन्य पुरुष एकवचन में
(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) के रूप में , जैसे -
ऊ तो अभी बुतरु हइ/ हकइ - वह तो अभी बच्चा है ।
किरिसना छातर हइ/ हकइ - कृष्ण छात्र है ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
ऊ पढ़ऽ हइ/ हकइ - वह पढ़ता/ पढ़ती है ।
मंजुआ कीऽ करऽ हइ/ हकइ ? - मंजु क्या करती है ?
मंजुआ घर के काम-काज देखऽ हइ/ हकइ - मंजु घर का काम-काज देखती है ।

ऊ दिन भर कीऽ करते रहऽ हइ/ हकइ ? - वह दिन भर क्या करते रहता/ रहती है ?

1.1.5 हउ/ हकउ का प्रयोग - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में कम होता है । जैसे –
तोरा पढ़े-लिक्खे आवऽ हउ/ हकउ ? - तुझे पढ़ना-लिखना आता है ?
तोर बेटवा कीऽ करऽ हउ/ हकउ ? - तुम्हारा बेटा क्या करता है ?

इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता है' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में क्रिया 'हउ' या 'हकउ' श्रोता के अनुसार है जो हैसियत या ओहदा में वक्ता से बहुत नीचे है !

1.1.6 (हे/) हके का प्रयोग - इसका प्रयोग "हम" के साथ किसी अन्यपुरुष के व्यक्ति, वस्तु आदि के लिए किया जाता है । जैसे -
हमरा ओरा / ओकरा से कोय मतलब नयँ हके - हमें उससे कोई मतलब नहीं है ।
हम्मर ऊ केऽ हके ? - मेरा वह कौन (लगता) है ? (अर्थात् मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं ।)

- ई तोर केऽ लगऽ हउ जे एतना परेशान हो रहलँ हँ ? - यह तेरा कौन लगता है जो तू इतना परेशान हो रहा है ?
- ई हम्मर बेटा हके । - यह मेरा बेटा है ।

ऊपर के प्रसंग पर ध्यान दें । यदि कोई सामान्य रूप से परिचय पूछ रहा हो तो "हके" का प्रयोग न होकर "हको" वगैरह का ही प्रयोग होगा ।
- ई तोर केऽ लगऽ हउ ? - यह तेरा कौन लगता है ?
- ई हम्मर बेटा हको । - यह मेरा बेटा है ।

यहाँ प्रश्नकर्ता कोई आदरणीय व्यक्ति है जिसकी अपेक्षा सम्बोधित व्यक्ति कम हैसियत वाला है ।

नोट: "हके" के संगत ककार रहित रूप "हे" का प्रयोग मेरे सुनने में नहीं आया ।

1.1.7 हो/ हको का प्रयोग - इसका प्रयोग तब किया जाता है जब वक्ता जिसे सम्बोधित कर बात कर रहा होता है वह व्यक्ति वक्ता की अपेक्षा हैसियत या उम्र में अधिक होता है । अतः यह आदरार्थ प्रयोग है । जैसे -
हमर बेटवा कलकत्ता में चपरासी के काम करऽ हो/ हको - मेरा बेटा कलकत्ता में चपरासी का काम करता है ।

इस उदाहरण में हिन्दी में 'करता है' क्रिया 'बेटा' कर्ता के अनुसार है, जबकि मगही में यह बात नहीं है । मगही में क्रिया 'हो' या 'हको' अव्यक्त श्रोता के अनुसार है जो वक्ता की दृष्टि में आदरणीय है !

मैं जब शायद हाई स्कूल में पढ़ता था (1960 के दशक के उतरार्द्ध में) तब चुनाव काल में कम्यूनिस्ट पार्टी के एक उम्मीदवार ने जनता के बीच अपने भाषण के दौरान जनसंघ पार्टी के बारे में निम्नलिखित टिप्पणी की थी -
मंगरू काका हो, जुम्मन भइया हो,
तनी मन में कर ल सोच-विचार
कि जनसंघ हको रंगल सियार
कि जनसंघ हको रंगल सियार ।


जनसंघ हको रंगल सियार - जनसंघ है रंगा सियार ।

इस उदाहरण में हिन्दी में 'है' क्रिया 'जनसंघ' के अनुसार है, परन्तु मगही में आदरार्थ 'हको' क्रिया 'जनसंघ' के अनुसार नहीं, बल्कि 'मंगरु काका' और 'जुम्मन भइया' के अनुसार है जो वक्ता के लिए आदरणीय हैं ।

नोटः
१. इस उदाहरण में 'हो' सम्बोधन हिन्दी/ संस्कृत में प्रयुक्त सम्बोधन शब्द 'हे' के अर्थ में प्रयुक्त है । कविता में इस प्रकार 'हो' का प्रयोग चल सकता है, परन्तु आम बोल-चाल में यह सम्बोधन उम्र या हैसियत में छोटे लोगों के लिए ही प्रयुक्त होता है । आदरार्थ सम्बोधन "जी", "अजी" आदि का प्रयोग किया जाता है ।

२. यहाँ लय हेतु 'हो' का उच्चारण 'होऽऽ' जैसा और 'हको' का उच्चारण 'हऽऽको' जैसा करना है ।

1.1.8 हन/ हकन का प्रयोग - यह भी आदरार्थ प्रयोग है । परन्तु, ऐसा प्रयोग किसी चीज या व्यक्ति के बारे में तब किया जाता है जब यह किसी ऐसे आदरणीय व्यक्ति से सम्बन्धित हो जिसे वक्ता सीधे सम्बोधित न कर रहा हो अर्थात् आदरणीय व्यक्ति अन्य पुरुष (third person) के रूप में प्रयुक्त हो । जैसे -
भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एगो धनी किसान तो हइये हथिन, भवानीपुर में लोहा सिमेंट के दोकानो हन/ हकन - भवानीपुर के गोवर्धन शर्मा एक धनी किसान तो हैं ही, भवानीपुर में लोहा सिमेंट की दुकान भी है ।
ऊ दोकान से निमन अमदनी हो जा हन/ हकन - उस दुकान से अच्छी आमदनी हो जाती है ।

उपर्युक्त उदाहरणों में हिन्दी में 'है' क्रिया 'दुकान' और 'आमदनी' के अनुसार है । परन्तु मगही में आदरार्थ 'हन' या 'हकन' क्रिया का प्रयोग अत्यन्त आदरणीय 'गोवर्धन शर्मा' जी के अनुसार है !

1.1.9 हँ/ हकँऽ के प्रयोग- इसका प्रयोग हिन्दी में प्रयुक्त "तू" के समानान्तर मगही में प्रयुक्त अनादरार्थ "तू" या "तूँ" के साथ
(1) मुख्य क्रिया या संयोजक (copula) रूप में किया जाता है । जैसे -
तू / तूँ हँ/ हकँऽ - तू है ।

(2) सहायक क्रिया के रूप में, जैसे -
तू / तूँ कीऽ करऽ हँ/ हकँऽ ? - तू क्या करता है ?
तू / तूँ इस्कूलवा पढ़े जा हँ/ हकँऽ ? - तू स्कूल पढ़ने जाता है ?

नोटः
(1) बिहारशरीफ की मगही में "है" के लिए साधारणतः 'हे' का प्रयोग नहीं होता जैसा कि अकसर प्रकाशित साहित्य में देखा जाता है । बिहारशरीफ के आसपास की मगही में "हे" का प्रयोग साधारणतः सम्बोधन के रूप में पाया जाता है ।

(2) प्रकाशित पत्रिकाओं/ पुस्तकों में “हन/ हकन” के स्थान में “हइन/ हकइन” रूप मिलते हैं ।